SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ताव ४: विमर्श और प्रकर्ष - ४७१ कर चलने लगे थे तब हमारे नगर के राजा भी उनकी सहायता को जाने के लिये तैयार हुए। उस समय पतिवल्लभा देवी अविवेकिता भी उनके साथ जाने को उद्यत हुई । उसको उद्यत देखकर राजा द्वषगजेन्द्र ने अपनी प्रिय पत्नी से कहा-'देवी कमललोचना ! अभी तुम्हारा शरीर रणक्षेत्र में जाने योग्य नहीं है। ऐसा लगता है कि युद्ध लम्बे समय तक चलेगा। अभी तुम गर्भवती हो और उसका यह अन्तिम माह है, इसलिये तुम्हें रणक्षेत्र में साथ ले जाना उचित नहीं है । अतः तुम यहीं रहो, अभी तो मैं अकेला ही लड़ाई में जाऊँगा।' उत्तर में सुमुखी ने कहा- 'नाथ ! आपके बिना मैं अकेली इस नगर में नहीं रह सकती, अतः कृपा कर मुझे साथ ले चलिये।' उसका उत्तर सुनकर राजा ने फिर कहा-'तुम्हें यहाँ नहीं रहना हो तो रौद्रचित्तपुर चली जायो । गर्भवती का युद्धक्षेत्र में जाना अनुचित है । * देवी ! वहाँ दुष्टाभिसन्धि राजा तुम्हारी देखभाल करेगा। यह दुष्टाभिसन्धि मेरी सेना का आदमी है और पवित्र है। तुम्हें किसी प्रकार की चिन्ता न रहे ऐसा प्रबन्ध वह कर देगा।' उत्तर में देवी अविवेकिता ने कहा--'मैं आपको क्या कहूँ ? क्या करना चाहिये यह तो पाप सब जानते हैं।' [१७-२५] इस वार्तालाप के बाद राजा द्वेषगजेन्द्र तो महामोह आदि के साथ युद्ध में गये और उनकी आज्ञा से देवी अविवेकिता रौद्रचित्तपुर गई । उसके बाद वहाँ से भी वह देवी किसी कारणवश अभी बाह्य प्रदेश में है, क्योंकि किस समय क्या करना चाहिये यह देवी अच्छी तरह से जानती है । यहाँ से जाने के बाद अविवेकिता देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया था तथा पति के साथ योग होने से अभी भी उन्होंने एक दूसरे पुत्र को जन्म दिया है, ऐसा मैंने सुना है । अतः अविवेकिता देवी अभी यहाँ नहीं है । मेरे यहाँ पाने का कारण भी तुम पूछ रहे थे, इसका उत्तर सुनो-[२६-२६] स्पष्टीकरण इस प्रकार संसारी जीव जब अपने चरित्र का सम्पूर्ण वृत्तान्त महात्मा सदागम के समक्ष सुना रहा था तब अगृहीतसंकेता ने अपनी बहिन के समान प्रज्ञाविशाला से कहा प्रिय बहिन ! यह संसारो जीव जब नन्दिवर्धन के भव में था तब वैश्वानर ने इसका लग्न हिंसा देवी के साथ करवाया था। उस समय वैश्वानर की मूलशुद्धि (उत्पत्ति) की जांच के प्रसंग में इसने पहले कहा था कि तामसचित्त नगर कैसा है, वहाँ के राजा द्वषगजेन्द्र कैसे हैं, तथा रानी अविवेकिता कैसी है ? इसके सम्बन्ध में आगे जाकर वर्णन करूगा और अविवेकिता रौद्रचित्तपुर नगर में * पृष्ठ ३४० 1 इस पुत्र का नाम वैश्वानर था जिसका वर्णन तृतीय खण्ड में आ चुका है। 2 इस पुत्र का नाम आठमुख वाला शैलराज है जिसका वर्णन पहले के प्रकरणों में आ चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy