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उपमिति-भव-प्रपंच-कथा
शोक - अरे ! इस नगर के राजा तो त्रिभुवन में प्रसिद्ध हैं। महामोह राजा के पुत्र रागकेसरी के भाई और अविवेकिता के पति यहाँ के राजा हैं, जो बहुत प्रसिद्ध हैं। उसके प्रताप से उसके समस्त शत्रु आहत हुए हैं और वे भय से कांपते हुए स्वर्ग, पाताल और मृत्यु लोक में छिप कर बार-बार उनका नाम जपते हैं। इनका नाम महाराजा द्वषगजेन्द्र है। ये महाराज अचिन्त्य वीर्य (शक्ति) सम्पन्न और अतुल पराक्रमशाली हैं। हमारे राजा का नाम लेने या पूछने की भी किसमें शक्ति है ? अरे, इन महाराजा की बात तो दूर रहने दो। इनको अत्यन्त वल्लभा पत्नी अविवेकता देवी भी अपनी शक्ति से तीनों भूवनों को मोहित कर देती है, अर्थात् घबराहट में डाल देती है। * यह अविवेकिता अपने स्वसुर महामोह की आज्ञा का सदा पालन करती है और बड़े लोगों के प्रति प्रेम रखने वाली तथा अपनी जेठानी (द्वषगजेन्द्र के बड़े भाई रागकेसरो की भार्या) महामूढता का सर्वदा कहना मानने वाली है। वह कभी भी अपने जेठ रागकेसरी की प्राज्ञा का उल्लंघन नहीं करती। अपनी जेठानी महामढता के साथ सगी बहिन जैसा प्रेम रखती है। अपने पति द्वेषगजेन्द्र पर उसे बहुत प्रेम और गहरी आसक्ति है, इसोलिये इसकी जगत् में पतिपरायणा के रूप में प्रख्याति है। अरे भले मनुष्यों ! हमारे राजा-रानी तो त्रिभुवन में प्रसिद्ध हैं, फिर तुम कौन हो और कहाँ से उनके बारे में पूछने आये हो ? [१-८]
विमर्श - भद्र ! आप हम पर कूपित न हों। इस संसार में सभी प्राणी सब कुछ जानते हों यह सम्भव नहीं है । हम तो बहुत दूर देश से आये हैं । आपका यह नगर हमने पहले कभी नहीं देखा था किन्तु आपके राजा-रानी का नाम अवश्य सुना था । आपके राजा अभी यहीं है या बाहर गये हैं, इसकी हमें खबर नहीं है । मन के सन्देह को दूर करने के लिये ही आपसे पूछा था। अतः अब आप हमें यह बताये कि अापके राजा यहीं है या बाहर गये हैं और हम उनसे कहाँ मिल सकते हैं ? [६-१२]
___ शोक-तुम जो कुछ पूछ रहे हो वह भी जग-प्रसिद्ध - बात है, सब बुद्धिमान् इस बात को जानते हैं. फिर तुम कैसे नहीं जानते ? सुनो-महाराज महामोह, उनके ज्येष्ठ पुत्र रागकेसरी और यहाँ के राजा द्वषगजेन्द्र तीनों ही अपनीअपनी सेना लेकर उस संतोष नामक हत्यारे को मार भगाने का दृढ़ निश्चय कर यहाँ से निकल पड़े थे। उन्हें गये तो बहुत समय हो गया। [१३-१५]
विमर्श - तब भाई ! आप यहाँ कैसे पाये हैं ? देवी अविवेकिता तो अभी इसी नगर में है न ? [१६]
शोक--देवी अविवेकिता अभी न तो यहाँ है और न महाराजा के साथ रणक्षेत्र में ही है। इसका कारण मैं तुम्हें अभी बताता हूँ। जिस समय महाराजा महामोह तथा रागकेसरी सेना लेकर हत्यारे संतोष को हनन करने का दृढ़ निश्चय
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