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________________ प्रस्ताव ४ : विमर्श और प्रकर्ष - ४६७ नगर छोड़कर बाहर गये हैं। फिर भी इस नगर की शोभा (सौन्दर्य) में तनिक भी कमी दिखाई नहीं देती, इसका क्या कारण है ? विमर्श-इस नगर में कोई महान् प्रभावशाली पुरुष रहता है, उसी के प्रभाव से नगर की समृद्धि-शोभा सर्वदा बनी रहती है। प्रकर्ष-मामा ! ऐसा है तो हमें इस नगर में जाकर उस पुरुष को ढढना चाहिये। विमर्श-ठीक है, चलो, चलते हैं। फिर वे दोनों नगर में प्रविष्ट हए और राजकुल तक आ पहँचे । वहाँ उन्होंने मिथ्याभिमान नामक अधिकारी को देखा । इस अधिकारो के पास अहंकार आदि कई पुरुष बैठे थे । विमर्श ने अपने भानजे से कहा-भद्र ! इस राजसचित्त नगर की जो श्री-शोभा अभी दिखाई दे रही है, वह इसी अधिकारी के प्रभाव से है। प्रकर्ष - तब हम क्यों न इसके पास जाकर इससे बातें करें और नगर जनशून्य-सा क्यों है ? कारण पूछे । विमर्श-चलो, चल कर पूछे । फिर वे दोनों मिथ्याभिमान के पास गये । उससे कुछ वार्तालाप किया और पूछा-भद्र ! इस नगर में मनुष्य बहुत थोड़े दिखाई देते हैं इसका क्या कारण है ? मिथ्याभिमान-अरे ! यह बात तो अच्छी तरह प्रसिद्ध हो चुकी है, क्या तुम्हें इसका पता नहीं है ? विमर्श-भद्र ! आप कुपित न हों। हम दोनों यात्री हैं, इसलिये हमको इसका ज्ञान नहीं है। हमें यह जानने का अत्यधिक कौतूहल है, अतः आपसे निवेदन करते हैं कि आप बतायें । मिथ्याभिमान इस नगर के स्वामी का नाम रागकेसरी है। ये त्रिभुवन में प्रसिद्ध प्रातःस्मरणीय महापुरुष हैं। इनके पिताजी का नाम महामोह है । इनके * विषयाभिलाष आदि अनेक मन्त्री और राज्याधिकारी हैं। वे अपनी पूरी सेना के साथ युद्ध-यात्रा में बाहर गये हुए हैं जिसे अनन्त काल हो चुका है । यहाँ के राजा ससैन्य बाहर गये हुए हैं, इसीलिये नगर में मनुष्य कम दिखाई दे रहे हैं। विमर्श-भद्र मिथ्याभिमान ! इन रागकेसरी राजा का किसके साथ युद्ध चल रहा है ? मिथ्याभिमान -दुरात्मा पापी संतोष के साथ । विमर्श-संतोष के साथ युद्ध करने का कारण क्या है ? मिथ्याभिमान-महाराज रागकेसरी की आज्ञा से मंत्री विषयाभिलाष ने स्पर्शन, रसना आदि पाँच अधिकारियों को समस्त जगत् को वश में करने के लिये * पृष्ठ ३३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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