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प्रस्तावनां
एक सरोवर है । उसमें, जितना अधिक पानी भरा है, उससे कम कीचड़ नहीं है । सरोवर में अनेकों श्वेतकमल विकसित हैं । इन सब के मध्य में, एक विशाल पुण्डरीक बिकसमान है । इसके मनोहारी स्वरूप को देखकर, पूर्व दिशा से एक व्यक्ति प्राता है और उस पुण्डरीक को तोड़कर अपने साथ ले जाने के लिये, सरोवर में घुस जाता है । यह व्यक्ति, उस पुण्डरीक तक पहुँचे, इसके काफी पहिले, वह, तालाब में भरे कीचड़ में फंस कर रह जाता है । इसी व्यक्ति की तरह, तीन और व्यक्ति, दक्षिण, पश्चिम व उत्तर दिशाओं की ओर से क्रमशः आते हैं और पुण्डरीक की मनोहर शोभा देख कर, उसे तोड़ने और अपने साथ ले जाने की इच्छा करते हैं । इसी प्रयास में, ये तीनों भी पूर्व दिशा से आये पहिले व्यक्ति की ही भांति, तालाब में भरे कीचड़ में फंस कर रह जाते हैं ।
उस
कुछ ही देर बाद, वहाँ एक भिक्षु भी ग्रा पहुँचता है । भिक्षु, सरोवर के तीर पर पहुँच कर, उसकी शोभा से आकृष्ट हो कर चारों ओर देखता है । उसे, तालाब के चारों ओर कीचड़ में, उन चारों व्यक्तियों को फंसा देखकर, यह समझते देर नहीं लगती कि वे क्यों और कैसे, इस दुर्गति में पहुँचे हैं । अतः, वह अपने स्थान से कुछ और आगे आता है, और सरोवर के किनारे पर पहुँचकर वहीं खड़े रहते हुए ही कहता है- 'श्रो पुण्डरीक ! मेरे पास ना जाओ ।'
पुण्डरीक, भिक्षु की आवाज सुनते ही, अपने मृणाल से अलग होकर, उड़ता भिक्षु के हाथ में आता है । यह देखकर, कीचड़ में फंसे चारों व्यक्ति, आश्चर्यचकित रह जाते हैं ।
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इस कथानक में जो प्रतीक अपनाये गये हैं, उन सब का प्रतीकार्थ स्पष्ट करके, कथा में अन्तर्निहित रहस्य / अभिप्राय को श्रमरण भगवान् महावीर स्वयं स्पष्ट करते हुए कहते हैं— 'कथानक में वर्णित सरोवर, यह संसार है । उसमें भरा हुआ जल, कर्म है और कीचड़, सांसारिक विषय-वासनाएं हैं । सरोवर में खिले श्वेतकमल, सांसारिकजन हैं । उनके मध्य में विकसित विशाल पुण्डरीक राजा है । चारों दिशाओं से आने वाले व्यक्ति, अलग-अलग मतों के अनुयायी व्यक्ति हैं और भिक्षु ‘सद्धर्म' है। सरोवर का किनारा 'संघ' है । भिक्षु द्वारा पुण्डरीक को बुलाना सद्धर्म का 'उपदेश' है । और पुण्डरीक का उसके पास आ जाना 'निर्वाण लाभ' है । 1
उत्तराध्ययन में 'नमि पवज्जा' का प्रतीकात्मक दृष्टान्त आया है । राजर्षि नमि जब विरक्त होकर श्रभिनिष्क्रमण में संलग्न होते हैं, तभी ब्राह्मण का वेष बनाकर, देवराज इन्द्र, उनके पास पहुंचता है और प्रश्न करता है - 'भगवन् ! मिथलानगरी में, आज यह कैसा कोलाहल सुनाई पड़ रहा है ?' उत्तर मिलता है - 'पत्र - पुष्पों से
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सूत्रकृताङ्ग - द्वितीय खण्ड - I श्रध्ययन,
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