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प्रस्ताव ४ : रसना और लोलता
४५५ बेचारी को मूर्छा आ गई है और वह मरने जा रही है, अतः हे देवों ! कृपा कर आप दोनों उसके निकट आइये । आप उनके पास रहेंगे तो मेरी स्वामिनी का स्वास्थ्य कुछ ठीक हो जायेगा। उनका स्वास्थ्य ठीक होने पर मैं निश्चिन्त होकर आप दोनों को उनका समस्त स्वरूप विस्तार के साथ बतलाऊंगी।
जड़ ने विचक्षण की तरफ देखा और कहा-चलो, हम इसकी स्वामिनी के समीप चलते हैं । उसे स्वस्थ होने दो, फिर यह दासी हमको निश्चिन्त होकर अपनी स्वामिनी के सम्बन्ध में सब बातें बतायेगी, इसमें क्या आपत्ति है ?
विचक्षण कुमार ने अपने मन में सोचा कि यह ठोक नहीं है। यह दासी मुझे तो अत्यन्त चालाक और स्वभाव से ही बहुत चंचल दिखाई देती है इसलिये यह अवश्य ही हमें ठगेगी। अथवा चल कर देखें तो सही, वहाँ जाकर यह क्या कहती है ? मुझे तो यह कभी भी ठग नहीं सकती, इसलिये चल कर देख ही लिया जाय, व्यर्थ में ही शंका करने से क्या लाभ ? ऐसा विचार कर विचक्षण ने जड से कहा-'चलो, ऐसा ही सही ।' दोनों कुमार वापस मुड़े और उस स्त्री के पास गये। उन्हें वापस आये देखकर वह थोड़ी स्वस्थ हुई। उसे स्वस्थ होते देखकर उसकी दासी उन दोनों कुमारों के पाँव पड़ी और बोली-'आपकी बड़ी कृपा हुई । आप दोनों ने बहुत ही अनुग्रह किया । आपने मेरी स्वामिनी को जीवित कर मुझे भी जीवनदान दिया।'
जड़-अरे सुन्दरी ! तेरी इस स्वामिनी का नाम क्या है ? दासी- मेरी स्वामिनी का प्रातः स्मरणीय नाम रसना (जिह्वा) है। जड़-तुझे किस नाम से पहचानू ? अर्थात् तेरा नाम क्या है ?
दासी-(लज्जित होकर) लोग मुझे लोलता (लोलुपता) के नाम से जानते हैं । मैं और आप तो चिरकाल से परिचित हैं किन्तु मुझे लगता है कि प्राप इस बात को भूल गये हैं। सचमुच में मेरा यह दुर्भाग्य है, मैं क्या करू!
जड़ अरे ! मेरा तुम्हारे साथ चिरकाल से परिचय कैसे है ? दासी-यही बात तो मैं आपको बताना चाहती हूँ।
जड़ - ठीक है, बताओ। दीर्घकालीन परिचय
लोलता दासी-यह मेरी स्कामिनी परम योगिनी है। यह भूत और भविष्य के सब भावों को जानती है और समझती है। इसकी मुझ पर बड़ी कृपा है, इसलिये मैं भी इसके समान ही बन गई हूँ । सुनिये, कर्मपरिणाम राजा के राज्य में असंव्यवहार नगर है । आप दोनों उस नगर में बहुत समय तक रहे थे। फिर कर्मपरिणाम राजा की आज्ञा से आप दोनों एकाक्षनिवास नगर तथा बाद में विकलाक्ष निवास नगर में आये । आप दोनों को याद होगा कि विकलाक्ष निवास नगर में तीन मोहल्ले हैं। उसमें प्रथम मोहल्ले में द्विरिन्द्रिय नामक कुलपुत्र रहते हैं। आप लोग जब इन कुलपुत्रों में निवास कर रहे थे तब महाराज की आज्ञा का
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