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प्रस्तावना
गद्य में है। किन्तु, बीच-बीच में कुछ गम्भीर बातों के लिए पद्यों का प्रयोग 'उक्तञ्च' 'अन्यच्च' 'तथाहि' 'पुनश्च' आदि शब्दों का सहारा लेकर किया गया है । काल्पनिक आख्यानों के आधार पर सरल, विनोदपूर्ण शैली में रचित, धार्मिक कथावस्तुपूर्ण इस रचना के कर्ता का और रचना काल का भी, कोई निश्चय नहीं किया जा सका है। किन्तु, १४३३ ई० की, इसकी जो पाण्डुलिपि श्री ए. बेवर को प्राप्त हुई, उससे यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इसका रचनाकाल भी १४३३ ई. से बाद का नहीं हो सकता। इस रचना में स्फुटित व्यंग्य, उन्नत आदर्श, सौम्य व्यवहार और लोक कल्याणकारी सिद्धान्तों का अक्षय वैभव पद-पद पर भरा पड़ा है।
'क्षत्रचड़ामणि' में जिन साहसिक, धार्मिक और मनोरंजनकारी कथाओं का समावेश वादीभसिंह ने किया है और प्रत्येक पद्य के अन्त में हितकर, मार्मिक और अनुभवपूर्ण गम्भीर नीति-वाक्यों का जिस तरह से समावेश किया है, उसे देखकर, इसे नीति-वाक्यों का प्राकर-ग्रन्थ कहना, अतिशयोक्ति न होगा । जीवन्धर कुमार का सम्पूर्ण चरित इसमें वर्णित है। इसकी मुख्य कथा के साथ-साथ अनेकों अवान्तर कथाएं भी आती गई हैं।
इस रचना के जो तीन रूपान्तर प्राप्त होते हैं, उनमें से 'गद्य-चिन्तामणि' के कर्ता मूल-ग्रन्थ के रचयिता ही हैं। दूसरा रूपान्तर 'जीवन्धरचम्पू' महाकवि हरिचन्द की रचना है। तीसरा रूप गुणभद्राचार्य के 'उत्तरपुराण' में मिलता है। जैन जगत के 'बृहत्कथाकोश' 'परिशिष्ट पर्व' व 'पाराधना कथाकोश' तथा बौद्ध साहित्य के 'अवदान शतक' एवं 'जातक-माला' को ऐसे कथाग्रंथों के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, जिनमें लोककथाओं की विनोदपूर्ण शैली के माध्यम से, उच्चतम जीवन-साधना और आदर्शों की ओर स्पष्ट सङ्कत किये गये हैं।
___ इन तमाम, भारतीय-लोक कथाओं के विपुल साहित्य ने यात्रियों, व्यापारियों और धर्मप्रचारक साधु-सन्यासियों के माध्यम से, सुदूर देशों में पहुंच कर, वहाँ-वहाँ के कथा-साहित्य को न सिर्फ प्रभावित किया, वरन्, उसमें, भारतीय आख्यान साहित्य की एक ऐसी अमिट निशानी भर दी, जो लोकमङ्गलकारी, जीवन्त आदर्शों का मनोरंजक उपदेश, मानवता को अनन्तकाल तक प्रदान करती रहेगी।
रूपक साहित्य : परम्परा एवं विकास
मानवीय हृदय के भावोद्गार, जब तक अपने अमूर्त स्वरूप में रहते हैं, तब तक, उनका साक्षात्कार इन्द्रियों द्वारा हो पाना सम्भव नहीं होता। ये ही भावोद्गार, जब किसी रूपक/उपमा में ढल कर, मूर्त रूप प्राप्त करते हैं, तब, वे सिर्फ
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