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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा 'चम्पकवेष्ठि' जिनकीति द्वारा काल्पनिक कथानक पर रचित एक मनोरंजक कथानक है। इसमें जो तीन कथाएं संकलित हैं, उनमें से पहला कथानक, भाग्य-रेखाओं को निरर्थक बनाने में असफल महाराज 'रावण' का है । दूसरा कथा नक, एक ऐसे भाग्यशाली बालक का है, जो प्राणनाशक पत्रक में फेरबदल करके, अपने प्राणों की रक्षा कर लेता है। तीसरा कथानक एक ऐसे व्यापारी का है, जो जीवन भर तो दूसरों को ठगता है, किन्तु, जीवन की अन्तिम वेला में, स्वयं, एक वेश्या द्वारा ठग लिया जाता है। इसका रचनाकाल पन्द्रहवीं शताब्दी अनुमानित किया जाता है। इसी स्तर की एक और रचना 'पाल-गोपाल कथानक' जिनकीर्ति द्वारा रचित है । इस में, प्रस्तुत कथानक भी मनोरंजक है । प्राणघातक पत्रक को बदल कर प्रारण रक्षा करने वाले एक और कथानक के आधार पर 'अघटकुमार'2 कथा का प्रणयन किया गया है। इस कथा के भी दो अन्य संस्करण मिलते हैं। जिनमें, एक छोटा, दूसरा बड़ा है । एक गद्यमय है और दूसरा पद्यमय । 'अम्बड चरित'3 जादुई मनोविनोद से भरपूर, अमरसुन्दर की रचना है। इसमें अम्बड की कथा आधुनिक रूप में परिणत है। ज्ञानसागरसूरि की रचना 'रत्नचडकथा'4 में पर्याप्त रोचक और मनोरंजक कथाएं हैं । इसमें एक ऐसी कथा आई है, जिसमें, 'अनीतिपुर' नाम की नगरी में 'अन्याय' नाम के राजा और 'अज्ञान' नाम के मंत्री की कल्पनाएं करके, इन सब का मनोहारी चरित्र-चित्रण किया गया है। इसका रचनाकाल, पन्द्रहवीं शताब्दी का मध्य भाग अनुमानित किया जाता है । इस में, अन्य और भी कथानक हैं। जिनमें से अनीतिपुर नगर, अन्याय राजा और अज्ञान मंत्री के कथानक की कल्पना में, सिद्धर्षि प्रणीत 'उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा' की परम्परा का प्रभाव स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। पञ्चतन्त्र की शैली पर लिखी गई 'सम्यक्त्व कौमुदी' धार्मिक और मनोरंजक कथाओं से भरी-पूरी रचना है। कथा का प्रारम्भ और सम्पूर्ण कथावस्तु १. श्री हर्टेल द्वारा अंग्रेजी में अनूदित-सम्पादित-वही-५२६ २. श्री चारलट क्रूसे द्वारा पद्यभाग का जर्मन में अनुवाद किया गया है। संक्षिप्त पद्यभाग १९१७ में निर्णयसागर प्रेस बम्बई 'अघटकुमार चरित' नाम से प्रकाशित हो चुका हैं । द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ-५ १४० ३. श्री हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा सम्पादित एवं श्री चारलट क्रूसे द्वारा जर्मन में अनूदित । द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ-५४० ४. यशोविजय जैन ग्रंथमाला-भावनगर द्वारा सन् १९१७ में प्रकाशित । श्री हर्टेल द्वारा जर्मनी में अनूदित । द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ-५४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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