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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
नरवाहन-इस परीक्षा की घड़ी में कुमार के मन में इतनी अधिक घबराहट होने का क्या कारण हो सकता है ?
प्राचार्य - इसका कारण यही है कि जिस विषय में कुमार की परीक्षा होने जा रही है उसमें वह नितान्त अज्ञानी है । जब विद्वान् परस्पर स्पर्धा करते हुए सभाकक्ष में अपनी-अपनी वाणो के शस्त्र छोड़ते हुए वाद विवाद करते हैं तब जिस व्यक्ति को ज्ञान का सहारा नहीं होता उसे अवश्य ही घबराहट होती है।
नरवाहन-पर, आर्य ! इस कुमार में तो अज्ञान का प्रश्न ही क्या है ? कुमार ने तो समस्त कलाओं में प्रकर्षता एवं प्रवीणता प्राप्त कर रखी है।
उस समय कलाचार्य को मेरे दुर्व्यवहार की स्मृतियाँ आने से वे तनिक क्रोध और कुछ सहज तीखे स्वर में बोल उठे-महाराज ! कुमार ने तो शैलराज (अभिमान) और मृषावाद (असत्य भाषण) द्वारा रचित कला में निपुणता प्राप्त कर शिरोमणि पद प्राप्त किया है। अन्य किसी भी कला में इसने प्रवीणता प्राप्त नहीं की है।
नरवाहन -- अभी आपने कही वे कौन-कौन सी कलायें हैं ?
आचार्य--पहली तो किसो का भी अपमान करना और दूसरी असत्य भाषण करना । इसके शैलराज और मृषावाद नामक दो अन्तरंग मित्र हैं, उन्हीं ने कुमार को ये कलायें सिखाई हैं और इन दोनों कलाओं में कुमार बहुत कुशल हो गया है। अन्य किसी भी प्रकार की कलाओं का एक अक्षर भी वह नहीं जानता । 6
नरवाहन-ऐसा क्यों और कैसे हुआ ? ।
आचार्य—मेरे मन में ऐसा भय था कि सच्ची बात बताने से आपको अतिशय संताप एवं दुःख होगा, इसीलिये अभी तक मैंने आपको सच्ची बात नहीं बताई। कुमार का व्यवहार सामान्य लोगों के नियमों से भी इतना विपरीत है कि अभी भी आपके समक्ष उसका वर्णन करने में मेरी वाणी असमर्थ है।
__नरवाहन -- जो कुछ घटना घटी हो उसे कह सुनाने में आपका कुछ भी अपराध या दोष नहीं है । अतः हे आर्य ! निःशंक होकर आप सच्ची बात कह सुनायें। . इस पर आचार्य ने भिन्न-भिन्न प्रसंगों पर मैंने उनकी आज्ञा का उल्लंघन किया, उनका अपमान किया, उनके वेत्रासन पर कितनी बार बैठा और अन्त में कैसे दुर्वचनों से उनका तिरस्कार कर वहाँ से चला आया आदि मेरे दुर्व्यवहार का संक्षिप्त वर्णन पिताजी को सुना दिया।
। प्राचार्य के मुख से सारी घटना सुनकर मेरे पिताजी ने कहा--आर्य ! जब आप स्वयं मेरे कुमार के इस चरित्र को जानते थे और इसके अज्ञान को भी जानते थे तब ऐसे कुल-कलंक को इस राज्यसभा में परीक्षा दिलवाने के लिये किस लिये ले पाये ? अरे ! इस पापो ने तो हमें आज तक खूब धोखे में रखा । * पृष्ठ ३११
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