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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा होता है कि पहलवी भाषा में अनूदित ग्रन्थ का नाम भी पञ्चतन्त्र के प्रथम तन्त्र में वरिणत दोनों शृगालों के नाम पर रहा होगा । और सम्भव है, इस रूपान्तर के समय तक, पञ्चतन्त्र का नामकरण भी यही हो गया हो । पञ्चतन्त्र में चाणक्य का उल्लेख होने, और उस पर 'अर्थशास्त्र' का स्पष्ट प्रभाव होने से, यह भी अनुमानित होता है कि इसका रचना काल ३०० ई. के निकट होना चाहिए। क्योंकि अर्थशास्त्र को, दूसरी शताब्दी की रचना माना जाता है। विश्व में, जिन पुस्तकों के सर्वाधिक अनुवाद हुए हैं, उनमें से एक 'पञ्चतन्त्र' भी है। भारत में, यह सभी भाषाओं में, लगभग अनूदित हो चुका है। पचास से अधिक विदेशी भाषाओं में, दो सौ पचास संस्करण इसके निकल चुके हैं। ग्यारहवीं शताब्दी में इसका हिब्र में, १३वीं शताब्दी में स्पेनिश में, और १६वीं शताब्दी में लैटिन एवं अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद हुआ था। इसके प्राचीनतम अनुवाद से यह पता चलता है कि इसमें कुल बारह तन्त्र रहे होंगे । आज, सिर्फ पांच ही तन्त्र इसमें हैं। पञ्चतन्त्र के बाद सर्वाधिक प्रचलित संकलन, नारायण पंडित का 'हितोपदेश' है। इसकी एक पाण्डलिपि १३७३ ई. की मिली है। जिसके आधार पर, इसका रचना काल १४वीं शती से पूर्व का माना जा सकता है। डॉ. कीथ का कथन है कि इसका रचनाकाल ११वीं शती से बाद का नहीं हो सकता। क्योंकि इसमें रुद्र भट्ट का एक पद्य उद्धृत है। ११६६ ई. में, एक जैन लेखक ने भी इसका उपयोग किया था। इससे भी उक्त कथन प्रमाणित हो जाता है । 'हितोपदेश' पञ्चतन्त्र की ही पद्धति पर लिखा गया है। बल्कि, इसकी कुल ४३ कथाओं में से २५ कथायें, 'पञ्चतन्त्र' से ली गई हैं। इस सत्य को स्वयं ग्रन्थकार ने प्रस्तावना भाग में स्वीकार किया है। दोनों में सिर्फ इतना फर्क है कि हितोपदेश में, पञ्चतन्त्र की अपेक्षा, श्लोक अधिक हैं। इनमें से कुछ श्लोक 'कामन्दकीय नीतिसार' में मिलते हैं। बौद्धों की नीतिकथाएं जातकों में संकलित हैं । इनका संकलन ई. पू. ३८० में विद्यमान था। एक चीनी विश्वकोश (६६८ ई.) में बौद्धग्रंथों से ली गई २०० नीतिकथाओं का अनुवाद है । 'अवदानशतक' में, और आर्यशूर रचित 'जातकमाला' में भी बौद्धों की नीतिकथाओं का संकलन है। १. संस्कृत साहित्य की रूपरेखा--पृष्ठ-३०० २. मैकडानल : हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिट्रेचर, पृष्ठ-३७० ३. वही--पृष्ठ-३६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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