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________________ प्रस्तावना संकलित की गईं थीं, वे सब की सब, 'फेबल्स' के अन्तर्गत ही रखीं गईं थीं । इनमें प्रख्यात ग्रीक नीतिकथाकार ईसप (Acsop ) से लेकर डोडस्ले ( Dodslay ) तक की नीतिकथाएं थीं । इन कथाओं के पात्रों में कहीं 'ईसप एवं गर्दभ' है, तो कहीं पर 'दो बर्तन' है । शृंगाल, सिंह, हाथी आदि पञ्चतन्त्र की कहानियों जैसे पात्र भी कुछ कथाओं में थे । इन सब कहानियों को 'फेबल्स' कहना, उस समय ठीक माना जा सकता था, क्योंकि, इस संग्रह के प्रकाशन काल तक, नीतिकथा की कोई भेद-दर्शिका व्याख्या/ परिभाषा, या ऐसा ही कोई लक्षण - विशेष, स्पष्ट नहीं हो पाया था । किन्तु प्राज, 'फेबल्स' का स्पष्ट स्वरूप सामने आ चुका है । 1 तदनुसार, ' नीतिकथा' के अन्तर्गत वे ही कथाएं ग्रहरण की जा सकेंगी, जिनमें अधिकतर पात्र मानवेतर क्षुद्र प्रारणी हों, और, कहीं-कहीं, मानवीय पात्र भी आये हों । किन्तु, प्रमुख रूप में नहीं, बल्कि, गौरण रूप में ही । पशु-पक्षियों के माध्यम से व्यावहारिक उपदेश देने की परम्परा, भारत में बहुत प्राचीन है । ऋग्वेद में 'मनु श्रौर मत्स्य' की कथा आई है । छान्दोग्योपनिषद् में दृष्टान्त के रूप में उद्गीथ श्वान का श्राख्यान है । रामायण में कुछ नीति - कथाएं वरित हैं और कुछ उपमाओं द्वारा संकेतित । महाभारत में भी विदुर के श्रीमुख से अनेकों उपदेशप्रद नीतिकथाएं कहीं गईं हैं । ई. पू. तीसरी शताब्दी के भारहूतस्तूप पर भी अनेकों नीतिकथाएं उट्टंकित की गई हैं ।" पातञ्जलि के महाभाष्य में 'अजाकृपारणीय' 'काकतालीय' आदि लोकोक्तियों का, और 'सर्पनकुल' 'काकउलूक' की जन्मजात शत्रुता का उल्लेख प्राया है । नीतिकथा का स्पष्ट रूप 'पञ्चतन्त्र' में मिलता है । विष्णु शर्मा द्वारा रचित यह ग्रन्थ, नीति - साहित्य का सर्व प्राचीन और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । किन्तु, मौलिक 'पञ्चतन्त्र' आज उपलब्ध नहीं है । वैसे, पञ्चतन्त्र के आज कल आठ संस्करण उपलब्ध हैं, जिनमें, थोड़ा-बहुत हेर-फेर अवश्य है । इन सारे संस्करणों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर, डॉ. एजर्टन ने एक प्रामाणिक संस्करण प्रस्तुत किया है । ३५ 'पञ्चतन्त्र' की रचना कब हुई ? निश्चय के साथ, आज कुछ भी नहीं कहा जा सकता । बादशाह खुसरू अन् शेर खां ( ५३१ - ५७६ ) के शासनकाल में, इसका पहली बार अनुवाद पहलवी भाषा में हुआ था । परन्तु, आज यह अनुवाद भी प्राप्य हो गया है । इस अनुवाद के प्रासुरी ( Syriac ) और अरबी रूपान्तर अवश्य मिलते हैं । जिनके नाम क्रमश: 'कलि लग तथा दम नग' (५७० ई.) और 'कलीलह तथा दिमनह' ( ७५० ई.) रखे गये थे । इन नामों से यह अवश्य ज्ञात 1. २. Oxford Junior Encyclopaedia : Vol. I, ‘Mankind' oxford, 1955 p. मैकाल : इंडियाज पास्ट---पृष्ठ- ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only 167 www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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