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उपमिति-भव-प्रपंच कथा पर प्रेम रखने वाली, पति की अनुरागिणी और पूतना जैसी निर्दय निष्करुणता नामक इस राजा की महारानी है।
दष्टाभिसन्धि राजा लोगों को भिन्न-भिन्न प्रकार के कष्ट देता रहता है उस समय कष्ट पाते दयनीय लोगों को देखकर उन पर दया लाने के बदले यह रानी मुक्त हास्य पूर्वक हँसती है और प्रसन्न होकर गाढतर दुःखों को उत्पन्न करती है । इसीलिये इसे दूसरों की वेदना नहीं समझने वाली कहा है। [१-२]
आँखें फोड़ देना, शिरोच्छेद कर देना, नाक कान काट देना, चमड़ी उतार देना, हाथ-पांव तोड़ देना, खदिर की लकड़ी के समान शरीर को पीटना आदि प्राणियों को पीड़ा देने के सभी उपायों में यह रानी अत्यन्त चतुर है । इसीलिये इस निष्करुणता रानी को पाप के रास्तों में कुशल कहा है। [३-४]
सम्पूर्ण संसार को सन्ताप देने वाले, परद्रोह के आदि अधम चेष्टायें करने वाले दुष्ट और नीच लोग जो इस नगर में रहते हैं, उन सब पर इस महारानी का प्रगाढ प्रेम है और उन्हें वह अपने विशेष अनुचर के रूप में नियुक्त करती है । इसीलिये इसे चोर-वृन्द पर प्रेम रखने वाली कहा है। [५-६]
अपने पति में अनुरक्त यह रानी दुष्टाभिसन्धि राजा को परमात्मा के समान मानती है और रातदिन उसकी सेवा शुश्रूषा करने में तत्पर रहती है । उसके शरीर को या उसका साथ वह कभी नहीं छोड़ती और उसके बल को संचय कर बढाती है । इसीलिये उसे पति की अनुरागिरणी कहा गया है। [७-८] हिंसा पुत्री
निष्करुणता रानी के एक हिंसा नामक पुत्री है जो रौद्रचित्तपुर की निकृष्टतम समृद्धि की अभिवृद्धि करने वाली, नगर निवासियों की अत्यन्त वल्लभा, माता-पिता के प्रति विनीता और स्वरूप से प्रतिभीषण आकृति वाली है, मानो वह साक्षात कालकूट विष से निर्मित हुई हो ।
__जब से इस पुत्री का राजभवन में जन्म हुमा है तब से रौद्रचित्त नगर समस्त प्रकार से समृद्ध हुआ है और राजा-रानी के शरीर भी पुष्ट हुए हैं। इसीलिये इस हिंसा कन्या को इस रौद्रचित्तपुर की निष्कृष्टतम समृद्धि की अभिवृद्धि करने वाली कहा गया गया है। [१-२] .
ईर्ष्या, द्वेष, मत्सर, क्रोध, अशांति आदि बड़े-बड़े प्रसिद्ध कीति वाले इस नगर के प्रधान नागरिक हैं, उन्हें यह हिंसा अत्यधिक प्रानन्द देने वाली है। यह एक की गोद में उठकर दूसरे की गोद में बैठ जाती, एक के हाथ से दूसरे के हाथ में चली जाती तब लोग उसका चुम्बन करते । इस प्रकार यह हिंसा स्वेच्छाचारिणी के रूप में नगर में धूमती रहती है। इसीलिये इसे नगर निवासियों की अत्यन्त वल्लभा कहा गया है। [३-५] * पृष्ठ २४६
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