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उपमिति-भव-प्रपंच कथा वाले, राग-द्वेषादि भयंकर विषधर सर्यों के लिये जांगुली मन्त्र के समान अर्थ एवं श्रेष्ठ भावपूर्ण महास्तोत्र शुद्ध एवं गम्भीर ध्वनि के साथ बीचबीच में पढे जाने लगे। अन्तःकरण के प्रमोदातिरेक को सूचित करने वाले विभिन्न इन्द्रियों एवं हाथ-पैर अंगहार-विक्षेप के साथ महानत्य होने लगे । इस प्रकार जैसे मेरु पर्वत पर देवता और असुर गण जिनेश्वर भगवान् का अभिषेक बड़े ठाट-बाट से करते हैं उसी प्रकार विशाल जन समुदाय के मध्य में शत्रुमर्दन राजा ने प्रभु का अभिषेक मंगल स्नात्र महोत्सव सम्पन्न किया। पश्चात् मूलनायक आदिनाथ भगवान् एवं अन्य समस्त जिन प्रतिमाओं की विशेष प्रकार से पूजा-अर्चना की तथा उस समय करणीय शेष समस्त कार्यों को यथोचित रीति से सम्पन्न किया । अनन्तर समस्त साधुओं की वन्दना की, प्रचुर दान दिया, स्वधर्मीवन्धुओं को विशेष रूप से सम्मानित किया। इसके बाद मनीषी को अपने राजभवन में ले जाने के लिये अपना जयकुजर नामक हाथी मंगवाया। उस पर मनीषी को बिठाया राजा स्वयं उसके पीछे छत्र धारण कर बैठा और हर्षातिरेक से रोमांचित होकर राजा ने घोषणा की, हे सामन्तों और मंत्रियों सुनों - राजा की घोषणा
तत्त्वतः इस संसार में 'सत्त्व' प्राणी की सबसे बड़ी सम्पत्ति है, आत्मिक बल है, ऐसा सर्वज्ञों ने बार-बार कहा है । अतः संसार में जिस प्राणी का 'सत्त्व' अधिक प्रकाशित है, वह समस्त मनुष्य-वर्ग पर प्रभुता स्थापित करने में समर्थ होता है। यही कारण है कि सत्त्व के परमोत्कर्ष को धारण करने वाले इस महात्मा मनीषी का माहात्म्य कैसा है, यह तो आप लोगों ने स्पष्टतया देखा ही है। जब प्राचार्यश्री ने अप्रमाद यंत्र की बात की थी तब वह मुझे भी महा कठिन और त्रासदायक लगा था, परन्तु इस महात्मा ने उस यन्त्र की तुरन्त ही अपने लिये याचना की। अत: इसमें असाधारण प्रात्मिक बल है, इसमें कोई संदेह नहीं । हम सबका उपकार करने की बुद्धि से जब तक यह मनीषी घर में रहे तक तक अपना स्वामी है, अपना देव है, अपना गुरु है और अपना पिता है । हम सब इसके किंकर हैं। अत: अपने से बड़ा मानकर इनके साथ व्यवहार करें। मैं स्वयं और आप सब भी उसकी निर्मल सेवा कर अपनी पात्मिक उन्नति करें। उत्तम व्यक्ति का विनय करने से प्रात्मा के पाप धुल जाते हैं।
राजा के वचन सुनकर सामन्त, मन्त्री, और नगरजन प्रसन्नता से - उत्फुल्ल चित वाले होकर बोले-आप जो कह रहे हैं वह बिल्कुल ठीक है । प्राप जैसे राजा जो कहें वह किसको रुचिकर न होगा ? हम सब आपके कथनानुसार ही करेंगे। [१-७] मनीषी के शरीर में शुभसुन्दरी का योगशक्ति से प्रवेश
___ उपरोक्त बात चल रही थी तभी मनीषी के शरीर में योगशक्ति द्वारा विद्यमान उसकी माता शुभसुन्दरी अधिक विकसित हुई और अपने योग का अधिक
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