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________________ २८८ उपमिति-भव-प्रपंच कथा शत्रुमर्दन नाम ही कैसा ? प्राचार्यश्री के समक्ष मुझे ऐसा कहना तो नहीं चाहिये, किन्तु दुष्टों का निग्रह करना राजा का धर्म है, अतः मैं तुम्हें जो आज्ञा दे रहा हूँ, आर्य ! उसे ध्यानपूर्वक सुनो। सुबुद्धि-कहिये, क्या प्राज्ञा है ? शत्रुमर्दन-प्राचार्यश्री ने जैसा अभी कहा कि अकुशलमाला और स्पर्शन ये दोनों बाल के साथ जायेंगे अतः अब इन दोनों का वध करना तो व्यर्थ है किन्तु तुम उन्हें मेरी यह आज्ञा सुना दो कि वे दोनों मेरे राज्य की सीमा से तुरन्त दूर, बहुत दूर चले जायें। बाल के मर जाने के बाद भी वे हमारे देश में वापस नहीं लौटें । यदि वे इस प्राज्ञा का उल्लंघन करेंगे तो इन्हें प्राणान्त दण्ड दिया जायगा। इस प्रकार की आज्ञा देने के उपरान्त भी यदि वे मेरे देश में फिर से प्रवेश करें तो उन्हें किञ्चित् भी विचार किये बिना ही इन दोनों को लोहयन्त्र में डालकर पील देना । ये दोनों महादुष्ट कितना भी रोएं या चिल्लाएं तब भी इन पर तुम नाममात्र की भी दया मत करना। सुबुद्धि मन्त्री सोचने लगा कि, अहो ! राजा की इन दोनों पर कोप दृष्टि हुई है और आवेश में आकर राजा ने मुझे यह प्राज्ञा दी है। राजा ने जब मुझे नियुक्त किया था तब यह वचन दिया था कि वे मेरे से किसी प्रकार का हिंसा का कार्य नहीं करायेंगे, पर प्रवेश में राजायह वचन भी भल गये हैं। अस्तु । आचार्यश्री तो इसी विषय को लेकर राजा को प्रतिबोधित करने का कारण ढूढ लेंगे। मुझे तो राजाज्ञा शिरोधार्य करनी ही चाहिये । यह सोचकर मन्त्री बोला-"जैसी महाराज की प्राज्ञा।" इस प्रकार कहकर मन्त्री स्पर्शन और अकुशलमाला को राजा को प्राज्ञा सुनाने के लिये जाने की तैयारी करने लगा। उसो समय आचार्यश्री ने कहा-नरेन्द्र ! इन दोनों के विषय में तुम्हारी यह आज्ञा व्यर्थ है । इन्हें मूल से उखाड़ फेंकने का यह उपाय नहीं है, क्योंकि अकुशलमाला और स्पर्शन ये दोनों अन्तरंग वर्ग के हैं और अन्तरंग वर्ग के लोगों पर लोहयन्त्र (घाणी या फांसी) आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । बाह्य शस्त्र तो उन तक पहुँच ही नहीं सकते। शत्रमर्दन–भदन्त ! तब इन दोनों के निर्दलन (नाश) का क्या उपाय है ? अप्रमाद यन्त्र आचार्य - अन्तरंग में रहने वाला अप्रमाद यन्त्र ही इन दोनों को नाश करने का उपाय है। मेरे पास जो साधु बैठे हैं वे इन दोनों का निर्दलन और उन्हें चूर-चूर करने के लिये उस यन्त्र का निरन्तर प्रयोग करते हैं, धारण करते हैं। शत्रुमर्दन--इस अप्रमाद यन्त्र के साथ दूसरे और क्या-क्या उपकरण होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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