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प्रस्ताव ३ : चार प्रकार के पुरुष
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किया है, क्या वे सर्वदा ऐसे ही रहेंगे या कभी उनमें परिवर्तन भी सम्भव है ? क्या एक वर्ग के प्राणी किसी दूसरे वर्ग में परिवर्तित हो सकते हैं ?
प्राचार्य- महामन्त्रिन् ! उत्कृष्टतम विभाग के प्राणियों का स्वरूप तो स्थित है, स्थिर है, वे कभी दूसरी स्थिति या स्वरूप को प्राप्त नहीं होते । अन्य तीन वर्गों का स्वरूप अनित्य है, क्योंकि उन्हें कर्मविलास राजा के अधीन रहना पड़ता है। यह कर्मविलास राजा विषम (अव्यवस्थित) प्रकृति का है, अत: कभीकभी उत्कृष्ट प्राणियों को भी मध्यम या जघन्य वर्ग का बना देता है । कभी मध्यम वर्ग के प्राणी को भी उत्तम बना देता है और कभी जघन्य बना देता है । वैसे ही जघन्य प्राणी को कभी मध्यम और कभी उत्तम बना देता है । अतः जो प्राणी कर्मविलास राजा के पंजे से छट चके हैं, उन्हीं की स्थिति एक समान रहती है, अन्य लोगों की स्थिति तो परिवर्तित होती रहती है।
__ मनीषी सोचने लगा कि यह सारा वृत्तान्त हम तीनों भाइयों और भवजन्तु के बारे में अक्षरशः सत्य घटित होता है। इसका कारण यह है कि हमारे पिता कर्मविलास बहुत ही विषम प्रकृति वाले हैं। उन्होंने एक समय कहा था कि जब वे प्रतिकूल होते हैं तब प्राणी की वही गति होती है जो बाल की हुई है । अपना पुत्र भी यदि विपरीत मार्ग पर चले तो वे उसे भी दुःखों की परम्परा प्रदान कर योग्य दण्ड देते हैं तब वे अन्य प्राणियों पर तो ममत्व रख ही कैसे सकते हैं ?
सूबुद्धि-भगवन् ! आपने जो उत्कृष्टतम प्राणियों का वर्णन किया वे किसके प्रभाव से वैसे बनते हैं ?
प्राचार्य-इस वर्ग के प्राणी किसी दूसरे के प्रभाव से वैसे नहीं बनते । वे अपने वीर्य से अपनी शक्ति से ही वैसे बनते हैं।
सुबुद्धि--इस प्रकार की शक्ति उत्पन्न करने का उपाय क्या है ?
प्राचार्य श्री जिनेश्वर भगवान द्वारा प्ररूपित भाव-दीक्षा को अंगीकार करना और उसे भाव-पूर्वक निभाना ही इस प्रकार की शक्ति को प्राप्त करने का उपाय है।
मनीषी ने विचार किया की यदि ऐसा ही है तब तो मुझे भी उत्कृष्टतम विभाग का प्राणी बनना चाहिये । संसार की विडंबना और पोड़ा क्यों सहन की जाय ? इसका क्या लाभ ? प्रतः मुझे भी भाव-दीक्षा ले लेनी चाहिये। इस प्रकार सोचते हए मनीषो के मन में दीक्षा लेने के विचार दृढ हए। आचार्यश्री पौर सुबुद्धि मंत्री की बात-चीत सुनकर मध्यमबुद्धि को भी दीक्षा ग्रहण करने का विचार उत्पन्न हुआ, पर भाव-दीक्षा लेकर मैं नैष्ठिक अनुष्ठान सम्यक प्रकार से कर सकूगा या नहीं ? यही वह सोचने लगा।
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