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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
समझ में आ जायगा। ये प्राचार्य श्री अपनी विशाल ज्ञान दृष्टि से चराचर जगत के सर्व भावों को जानते हैं और वे सर्व प्रकार को शंकाओं का समाधान करने में भी समर्थ हैं।
[८५-६२] मध्यमबुद्धि के विचार
विस्मित दृष्टि से मनन पूर्वक मनीषी जब उपरोक्त विचार कर रहा था तब मध्यमबुद्धि ने उसकी ओर चित्त को केन्द्रित कर उससे पूछा--भाई मनीषी ! लगता है तू अपने मन में कुछ गहन विचार कर रहा है। क्या तुझे कोई नवीन तत्त्व मिला है ? । [६३-६४]
मनीषी--हे भाई ! ये महात्मा मुनि महाराज स्पष्ट शब्दों में सब बात करते हैं, फिर भी क्या तुझे तत्त्व की बात समझ में नहीं पाई ? मुझे तो निःसन्देह स्पर्शन ऐसा ही लग रहा है जैसा इन महात्मा ने अभी-अभी स्पर्शनेन्द्रिय का वर्णन किया है । [६५-६६]
___ यह सुनकर मध्यमबुद्धि को आश्चर्य हुआ । उसने पूछा--स्पर्शन और . स्पर्शनेन्द्रिय दोनों एक समान कैसे हो सकते हैं ? मनोषी ने उत्तर में अपने मन में जो कारण था वह कह सुनाया और भवजन्तु का स्पर्शन के साथ भूतपूर्व मित्रता के सम्बन्ध का उदाहरण देकर स्पर्शन प्रोर स्पर्शनेन्द्रिय की समानता को स्पष्टतः सिद्ध किया। [१७] बाल के तुच्छ विचार
उस समय बेचारा बाल तो पापकर्मों की प्रबलता के कारण यों हो चारों तरफ देख रहा था। गुरु महाराज के हितकारक उपदेश के प्रति वह पूर्णतः अनादर भाव प्रदर्शित कर रहा था।
... उस समय आचार्य श्री के मुख-कमल से निकली अमृतवाणी का पान करती विशालाक्षी मदनकन्दली रानी भो वहीं राजा के पास बैठी थी, जिस पर बाल की पाप-दृष्टि गई । पापी बाल सोचने लगा-'अहा! मेरे हृदय में निवास करने वाली मेरो हृदयवल्लभा मदनकन्दलो भी यहाँ पाई है ! अहा ! स्वर्ण कांति प्रभायुक्त इसका शरीर देखने मात्र से इसकी सम्पूर्ण कोमलता/मृदुता प्रकट हो जाती है। इसके दोनों पैरों के भीतर को शिराएँ (नाडियां) दिखाई नहीं देती, जो कछुए की पीठ जैसी उन्नत हैं और सर्व प्रकार से श्रेष्ठ हैं वे रक्त कमल जैसे दिखाई देते हैं। इस मदनकन्दली की दोनों जंधायें स्व-सौन्दर्य से कामदेव के मन्दिर के तोरण का आकार धारण करती हुई शोभायमान हो रही हैं । इस सुन्दर स्त्री के नितम्ब पर पहनी हुई मेखला (कंदौरे) से ऐसा प्रतीत होता है मानों कामदेव रूपी हाथो बंधा हुआ हो और इसकी अोर दृष्टिपात करने वाले को अमृत पान करा रही हो। इस स्त्री की सुन्दर कटि (कमर) ऊपर के बोझ से कृशीभूत, त्रिवली से
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