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________________ २६४ उपमिति भव-प्रपंच कथा स्वर में श्राक्रन्दन करते हुए और लोगों के हृदय-भेदी, कर्ण कटु एवं आक्रोश पूर्ण वचन सहन करते हुए कोलाहल के बीच में उसे नगर के राज्यमार्गों, तिराहों. चौराहों, चौक, बाजारों आदि में घुमाया गया । नगर बहुत बड़ा था इसलिये उसे सब स्थानों पर घुमाने में सारा दिन बीत गया । संध्या के समय उसे राजसेवक वध-स्थल पर ले आये । उसके गले में फांसी का फन्दा डालकर उसे वृक्ष की शाखा पर लटका दिया गया । बाल को इस दशा में देखकर नगरवासी वापिस चले गये । भवितव्यता (भाग्य) से बाल के गले में बन्धी रस्सी टूट गई और वह नीचे गिरा जिससे मूर्छित हो गया, मुर्दे जैसा चेष्टारहित हो गया । फिर वन का मन्द मन्द शीतल पवन उसके शरीर पर लगने से धीरे-धीरे उसे चेतना आई । जमीन पर घिसटते हुए और नि स्वास लेते हुए धीरे-धीरे वह अपने घर की तरफ जाने लगा । स्पष्टीकरण कुमार नन्दिवर्धन को विदुर कहता है कि यह सब कथा सदागम के समक्ष संसारी जीव ने कही और प्रगृहीतसंकेता आदि ने सुनी । इतनी कथा सुनकर अगृहीतसंकेता ने बीच ही में पूछा - अरे संसारी जीव ! तूने जो कथा कही उसमें क्षिति प्रतिष्ठित नगर के राजा का नाम अतुलपराक्रम सम्पन्न कर्मविलास बतलाया था, फिर आगे चलकर तूने उसी नगर का निपुण प्रशासक शत्रुमर्दन राजा बतलाया, तो एक ही नगर के दो राजा कैसे हो सकते हैं ? संसारी जीव - भोली बहिन ! जब मेरा जीव नन्दिवर्धन था और विदुर मुझे यह कथा सुना रहा था तब मैंने भी उससे यह प्रश्न पूछा था । उत्तर में उसने कहा था—‘कुमार ! कर्मविलास को अन्तरंग राज्य का राजा समझना चाहिये और शत्रुमर्दन को बहिरंग राज्य का राजा । इस प्रकार समझने पर तुम्हें किञ्चित् भी विरोध प्रतीत नहीं होगा । बहिरंग राजानों की प्रशासकीय प्राज्ञा बहिरंग नगरों के अपराधियों पर ही चलती है, इतर राज्यों पर नहीं । परन्तु अतरंग राजा तो गुप्त रहकर अपनी शक्ति से अच्छे-बुरे निमित्त एकत्रित कर देता है । (जो अच्छे कार्य करते हैं उनके साथ अच्छे निमित्त और जो बुरे काम करते हैं उनके साथ बुरे निमित्त प्रयुक्त कर देता है । फिर उन्हीं निमित्तों से प्राणी अपने कर्म के अच्छे-बुरे फल भोगता है) । बाल को जो-जो दुःख हुए वे कर्मविलास राजा की प्रतिकूलता के कारण ही हुए ऐसा तुके परमार्थ से समझना चाहिये ।' विदुर का यह उत्तर सुनकर मेरे मन की शंका नष्ट हुई । अब तू समझी ? फिर विदुर ने नन्दिवर्धन कुमार को प्रागे कथा सुनाई । मध्यमबुद्धि की व्यवहारिक विचारणा विदुर कहने लगा- बड़ी कठिनता से एक पहर अपने घर के निकट आया । इधर मध्यमबुद्धि ने उस दिन * पृष्ठ १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only रात्रि बीतने पर बाल प्रातः काल ही लोगों से www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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