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________________ १०. बाल की दुरवस्था इधर अकुशलमाला और स्पर्शन बाल के शरीर से निकल कर प्रकट हुए। अकुशलमाला कहने लगी-वाह बेटे ! बहुत अच्छा किया। उस झूठे वाचाल मनीषी का तिरस्कार कर तूने बहुत अच्छा किया। मेरे से उत्पन्न पुत्र को तो ऐसा ही करना चाहिये । तू मेरा सच्चा पुत्र है। स्पर्शन-माताजी ! ऐसे पुरुषों के साथ तो ऐसा ही व्यवहार करना चाहिये। ऐसा आचरण कर मेरे प्यारे मित्र ने मेरे प्रति दृढ़ अनुराग को प्रकट कर दिखाया है। अरे ! इतना कहने की भी क्या आवश्यकता? अब तो अपने तीनों का एक दूसरे के सुख-दुःख में एक समान भाग लेने जैसा सम्बन्ध जुड़ गया है। यदि कोई प्राणी बड़ा काम करने को तैयार हो तो उसके बीच में विध्न-बाधाएँ तो आती ही हैं, पर क्या कभी वह उनसे डरता है ? बाल-मेरा भी ऐसा ही कहना है, किन्तु मनीषी इस बात को नहीं समझता है। _स्पर्शन-तुझे उससे क्या काम है ? यह पापकर्मा मनीषी तो तेरे सुख में विघ्न करने वाला है । तेरे सुख के वास्तविक कारण तो मैं और तेरी माता ही हैं। बाल-इसमें क्या संदेह है ? यह तो संदेह-रहित बात है। इतनी बात-चीत होने के बाद अकूशलमाला और स्पर्शन अपनी योगशक्ति से पुनः बाल के शरीर में प्रविष्ट हो गये। जैसे ही ये दोनों बाल के शरीर में प्रविष्ट हुए, वैसे ही मदनकन्दली के साथ विषय-सुख भोगने की तीव्र इच्छा बाल को जागृत हुई । फलतः उसके शरीर में दाह होने लगी, उबासियाँ आने लगी और वह बिछौने पर पड़कर तड़फड़ाने तथा अपने शरीर को इधर से उधर पछाड़ने लगा । मध्यमबुद्धि ने दूर से बाल की चेष्टाएँ देखीं, उस पर दया आई, पर मनीषी के वचनों का स्मरण कर उसने बाल से कुछ नहीं पूछा। बाल का मदनकन्दली के शयनकक्ष में प्रवेश उस समय सूर्य अस्त हो गया था। रात्रि के प्रथम पहर में बाल महल से निकल पड़ा । * उसे बाहर निकलते देख मध्यमबुद्धि के मन में उसके प्रति तिरस्कार उत्पन्न हुआ, परन्तु वह इस समय पहले के समान उसके पीछे नहीं गया । बाल शत्रुमर्दन राजा के राजभवन के पास पहुँचा और चोरी छिपे राजभवन में घुस गया। दूर से मदनकन्दली का महल दिखाई दिया तो वह उस तरफ चलने लगा के पृष्ठ १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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