________________
प्रस्ताव : ३ बाल, मध्यम, मनीषी, स्पर्शन
२५३
होने पर सड़कों पर लोगों का गमनागमन बन्द हो गया। 'जो काम वह कर रहा है वह उचित है या नहीं' इसका विचार किये बिना ही बाल रात्रि के दूसरे प्रहर में महल से निकला और राजमार्ग पर जिधर शत्रुमर्दन राजा का महल था उसी तरफ चलते हुए कितनी ही दूर पहुँच गया। इधर मध्यमबुद्धि ने यह सोचकर कि इस बाल का क्या होगा ? * वह भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा। आगे-आगे बाल और पीछे-पीछे छुपता हुमा मध्यम बुद्धि जा रहे थे कि बाल ने एक पुरुष को देखा । उस पुरुष ने लात मारकर बाल को मयूरबन्ध (मजबूत रस्सों) से बांध दिया तो बाल जोर-जोर से चिल्लाने लगा, तब मध्यमबुद्धि ने 'पा रहा हूँ' 'पा रहा हूँ' जोर से दो तीन आवाज लगाई । मध्यमवृद्धि दूर से देख ही रहा था, तब तक तो वह पुरुष बाल को उठाकर ग्राकाश में उड़ने लगा। बाल अधिक चिल्लाने लगा तो उसने बाल का मुंह कपड़े से ढक दिया । बाल को उड़ाकर वह आकाश में पश्चिम दिशा की तरफ जाने लगा । 'अरे दुष्ट विद्याधर ! तू मेरे भाई को कहाँ ले जा रहा है ?' ऐसी आवाजें लगाते हुए तलवार खींचकर विद्याधर की दिशा में मध्यमबुद्धि भी जमीन पर भागने लगा। चलते-चलते वह नगर के बाहर निकल गया, तब तक तो आकाश में उड़ते हुए वह विद्याधर इतनी दूर निकल गया कि वह उसकी आँखों से भी अोझल हो गया।
उस समय मध्यमबुद्धि एकदम निराश हो गया तब भी भाई के स्नेहवश दौड़ना चाल रखा, यह सोचकर कि आगे किसी स्थान पर तो विद्याधर बाल को छोड़ेगा ही। दौड़ते-दौड़ते पूरी रात बीत गई । पाँव में जूते न होने से अनेक काँटे, कील, पत्थर लगते रहे, चुभते रहे । मध्यमबुद्धि दौड़-दौड़ कर थक गया, भूख-प्यास से पीडित हो गया, शोक से विह्वल और दीन हो गया, फिर भी पश्चिम दिशा की तरफ चलता ही गया। गाँव-गाँव में अपने खोए हुए भाई की खोज-खबर पूछते हुए वह सात दिन-रात इसी प्रकार चलते हुए अन्त में कुशस्थल नगर में पहुंचा।
मध्यमबुद्धि का आत्महत्या का प्रयत्न : बाल का मिलन
कुशस्थल नगर के बाहर मध्यमबूद्धि थोडा रुका, वहाँ उसने एक पुराना काम में न आने वाला गहरा कुआ देखा । 'भाई के बिना जीने से क्या लाभ' ऐसा सोचकर, उसने कुए में डूब कर प्रात्मघात करने के निर्णय से अपने गले में एक शिला (मोटा पत्थर) बाँधो । उसी समय वहाँ नन्दन नामक एक राजपुरुष ने मध्यमबुद्धि को ऐसा दुःसाहस करते हुए देखकर जोर से आवाज लगाई-भाई ! ऐसा दुःसाहस मत करो, मत करो।' कहते हुए वह दौड़कर मध्यमबुद्धि के पास आया और कुए की जगत पर से उसे कूदते हुए धर पकड़ा, उसके गले से बंधा हुआ बड़ा पत्थर अलग किया, उसे जमीन पर बिठाया और फिर ऐसा अधम कार्य (आत्मघात) करने का कारण पूछा। उत्तर में मध्यमबुद्धि ने किस प्रकार अपने भाई बाल से वियोग हुआ, वह सब घटना कह सुनाई । सुनकर नन्दन ने कहा- 'भाई ! यदि * पृष्ठ १८६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org