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________________ २५२ उपमिति-भव-प्रपंच कथा शयनकक्ष से बाहर निकल रही थी तब मुझे भी उसका स्पर्श हया था और ऐसा लगा था कि संसार में किसी भी अन्य वस्तु का स्पर्श इतना मादक नहीं हो सकता । उस समय मेरा मन भी उसके साथ विलास करने के विचार से डांवाडोल हो गया था। पर 'कुलीन मनुष्यों के लिये पर-स्त्रीगमन उचित नहीं' यह सोचकर मैं तुरन्त पीछे हट गया । यह भाई भी यदि मेरी बात माने तो इसे समझा कर अनुचित कार्य करने से इसे रोकू। ऐसा सोचकर मध्यमबुद्धि ने बाल से कहा- अरे भाई ! बाल ! क्या अभी तक तू मूर्ख अज्ञानी ही रहा ? अविनय का कितना बुरा परिणाम होता है क्या तूने स्वयं अभी उसका अनुभव नहीं किया है ? तेरे प्राण तो कण्ठ तक आ गये थे, तेरे दुर्विनय से भगवान् कामदेव तुझ पर बहुत क्रोधित हुए थे, बड़ी कठिनता से तो मैंने तुझे उनके हाथ से छुड़ाया है । क्या तू इतनीसी देर में सब कुछ भूल गया ? अतः भाई अब तो तू इन बुरे विचारों को छोड़ दे। तू ऐसा सोचले कि यह मदनकन्दली दृष्टि-विष सर्प के मस्तक में रही हुई मरिण है । इस स्त्री की इच्छा के परिणाम स्वरूप तू स्वयं जल कर राख हो जायेगा और तेरे हाथ कुछ भी नहीं लगेगा, यह तू निश्चित समझले । मध्यमबुद्धि के विचार सुनकर बाल समझ गया कि मेरे मन में क्या विचार चल रहे हैं यह उन सब को जान गया है अतः अब इससे छुपाना व्यर्थ है, यह सोचकर बाल ने उसे स्पष्ट कहा-अरे भाई ! यदि ऐसा है तो तूने मुझे छुड़वाया ऐसा क्यों कहते हो ? तूने तो मुझे अधिक पिटवाया है । तेरे कहने से ही कामदेव ने मुझे छोड़ दिया इससे मेरी शारीरिक वेदना तो मिटी, पर मुझ पर वितर्क-परम्परा रूप अंगारे डाल दिये जिससे मेरा पूरा शरीर जल रहा है, धधक रहा है । कामदेव ने जब मुझे बाँधा तभी मैं मर गया होता तो इतना अन्तस्ताप तो नहीं होता। मुझे छुड़वाकर तो तूने बहुत बड़ा अनर्थ कर दिया है। मेरे मन में इतना अधिक संताप हो रहा है कि उसे शान्त करने के लिये तो मदनकन्दली के मिलन रूपी अमृत सिंचन के अतिरिक्त और दूसरा कोई उपाय नहीं है । मैं तुझे अब अधिक क्या कहूँ। मध्यमबुद्धि अपने मन में समझ गया कि इसका भला करो तो इसे बुरा लगता है। उसे यह भी निश्चित मालूम हो गया कि वह मदनकन्दली के प्रति इतना अधिक आकर्षित हुआ है कि वर्तमान में तो वह आसक्ति किसी भी प्रकार कम नहीं हो सकती। यह किसी भी प्रकार इससे पीछे हट सकता हो ऐसा नहीं लगता । यह सब देखकर वह चुप हो गया। १. बाल, मध्यमबुदि, मनीषी और स्पर्शन बाल का अपहरण : मध्यमबुद्धि द्वारा शोध - सूर्यास्त हुआ तो बाल को लगा जैसे सूर्य (प्रकाश) उसके हृदय से ही निकल गया और चारों ओर अन्धकार फैल गया। रात्रि का प्रथम प्रहर समाप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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