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________________ २४० उपमिति-भव-प्रपंच कथा बीभत्स आकृति वाला तथा उससे भी अधिक दुष्ट स्वभाव वाला तीसरा बालक प्रकट हुआ, जो बाहर निकलते ही अधिकाधिक बढता गया। उसे बढते देखकर पहले निर्मल वर्णधारक सुन्दर बालक ने उसके सिर पर लात मारकर उसके बढाव को रोक दिया और उसे फिर से उसके प्रकृत असली) रूप में ले आया । यह देखकर काले रंग वाले दोनों बालक आचार्यश्री की सभा से बाहर चले गये। इस प्रकार तीनों बालकों का आश्चर्यजनक चरित्र चल रहा था तभी प्राचार्यश्री ने ऋतु राजा आदि को उद्देश्य कर कहा- भद्रजनों! आप सब सोच रहे हैं कि हमने विपरीत पाचरण किया है, पर आप लोगों को इस विषय में विषाद करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसमें तुम्हारा स्वयं का कोई दोष नहीं है, तुम सब अपने स्वरूप से तो निर्मल हो। ऋतुराजादि-भगवन् ! तब इसमें किसका दोष है ? आचार्य-इस श्वेत वर्ण के बालक के बाद जो श्याम वर्ण का बालक तुम्हारे शरीर में से निकला उसी का यह सब दोष है । ऋतुराजादि-प्रभु ! इसका नाम क्या है ? आचार्य--इसका नाम अज्ञान है। ऋतुराजादि- इस अज्ञान में से एक और दूसरा काला बालक प्रकट हुआ था जिसे इस उज्ज्वल बालक ने लात मारकर बढ़ने से रोक दिया था, उस बालक का क्या नाम है ? आचार्य-इसका नाम पाप है। ऋतुराजादि-उज्ज्वल रंग के बालक का क्या नाम है ? आचार्य -इसका नाम आर्जव (सरलता) है। ऋतुराजादि-यह अज्ञान कौन है ? इसमें से पाप कैसे प्रकट हुआ ? आर्जव ने उसे बढ़ने से कैसे रोका? यह सब विस्तार से जानने की हमारी उत्कट अभिलाषा है, अतः आप हम पर कृपा कर यह सब विस्तार से बतलाइये । प्राचार्य -- यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो सुनो। अज्ञान का स्वरूप तुम्हारे शरीर में से जो अज्ञान (बालक) बाहर निकला वही सब दोषों का कारण है। जब तक यह शरीर में रहता है तब तब प्राणी कार्य और अकार्य के भेद को नहीं समझ सकते और कहाँ जाना चाहिये तथा कहाँ नहीं जाना चाहिये यह भी तत्त्वतः नहीं जान सकते । भक्ष्य और अभक्ष्य तथा पेय और अपेय का ज्ञान भी इसके प्रभाव से प्राणी को नहीं रहता। अन्धा मनुष्य जैसे खड्डे में गिर जाता है वैसे ही * पृष्ठ १७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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