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________________ प्रस्ताव ३ : स्पर्शन-मूलशुद्धि २२५ आसक्ति नहीं रखनी चाहिये। यदि मैं उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार रखूगा तो वह मुझे किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकेगा, ऐसा मनीषी ने मन में विचार कर प्रात्म-निर्णय किया । तदनन्तर मनीषी और बाल पहले की ही भांति स्पर्शन के साथ क्रीडा करते हुए, विविध स्थानों का भ्रमण करते हुए समय व्यतीत करने लगे। स्पर्शन का प्रश्न : संसार में सारभूत क्या है ? एक बार स्पर्शन ने अपने मित्र-मण्डली में कहा, भाइयों ! संसार में सारभूत क्या है ? सभी प्राणी किस की इच्छा करते हैं ? बाल-मित्र ! इसमें पूछना क्या है ? यह तो सर्व विदित है। स्पर्शन-कहिये, वह क्या है ? बाल-मित्र ! वह सुख है। स्पर्शन--यदि ऐसा ही है तो प्रतिदिन उसका सेवन क्यों नहीं करते ? बाल-उसके सेवन का उपाय क्या है ? स्पर्शन-मैं स्वयं उसका उपाय हूँ। बाल-वह कैसे ? योग-शक्ति की महत्ता ___ स्पर्शन-मुझ में योगशक्ति है जिससे म प्राणी के शरीर में या बाहर किसी जगह छिपकर बैठ सकता है। फिर वे प्राणी भक्तिपूर्वक मेरा ध्यान करें, कोमल और सुन्दर स्पर्श के साथ सम्बन्ध स्थापित करें, तो उन्हें इतना अधिक सुख मिलेगा कि उस सुख से बढकर अन्य कोई सुख उन्हें प्रतीत नहीं होगा । अतः सुखसेवन का उपाय मैं स्वयं हूँ। (अब तो मेरी बात पूरी तरह समझ में पाई ?) ___ इतना सुनते ही मनीषी के मन में विचार उठा कि, अरे ! यह तो अब हमें ठगने का प्रपंच कर रहा है । खैर. देखें अब आगे यह क्या करता है ? बाल-मित्र! तुम्हारे साथ हमारा इतने दिन से सम्बन्ध है, फिर आज तक तुमने यह बात हमसे क्यों नहीं कही ? तुमने आज तक हमें अवश्य ही ठगा है। हम दुर्भागी हैं, क्योंकि सुख प्राप्त करने का इतना सरल उपाय पास में होते हुए भी हम अभी तक उस सुख का सेवन नहीं कर सके । तेरे पास इतनी प्रबल योग-शक्ति होने पर भी तूने उसे प्रकट नहीं किया यह तो तेरी असामान्य गम्भीरता है। पर, अब तो कृपा कर हमें अपना कुतूहल दिखा, तेरी योगशक्ति का प्रयोग कर सुख प्राप्त कराने में हमारी सहायता कर। क्या मेरी शक्ति बताऊँ ? ऐसा मन में सोचते हुए स्पर्शन ने संदेह पूर्वक मनीषी के मुख की तरफ देखा और उससे पूछा। (बाल ने जैसी इच्छा प्रकट की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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