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________________ ३. स्पर्शन कथानक मनीषी और बाल इस मनुजगति र नामक नगरी (देश) के भरत नामक मोहल्ले (प्रदेश) में क्षितिप्रतिष्ठित नामक नगर है। इस नगर पर अचित्य शक्ति सम्पन्न कर्मविलास नामक राजा का राज्य है। उसके दो रानियाँ हैं एक शुभसुन्दरी और दूसरी अकुशलमाला। शुभसुन्दरी से जो पुत्र हुआ उसका नाम मनीषी रखा गया और अकुशलमाला से जो पुत्र हुआ उसका नाम बाल रखा गया। मनीषी और बाल बढते हुए, अपनी इच्छानुसार वन-प्रांतर में विविध प्रकार की क्रीडा रस का प्रानन्दानुभव करते हए क्रमशः कूमारावस्था को प्राप्त हये। एक बार वे स्वदेह नामक उद्यान में विचरण कर रहे थे कि उन्होंने अपने पास किसी पुरुष को देखा । अभी दोनों कुमार उस पुरुष को देख ही रहे थे कि वह एक तदुच्छय (उन्नत) वल्मीक के ढेर पर चढ गया। उसके पास ही एक मर्छ नामक वृक्ष था, जिसकी शाखा पर रस्सी बाँध कर, उसके एक सिरे पर फांसी का फन्दा लगाकर, अपने गले को उसमें फंसाकर नीचे लटक गया । अरे ! ऐसा दुस्साहस मत करो! दुस्साहस मत करो ! दुस्साहस मत करो !! कहते हुये दोनों कुमार दौड़ते हुए उसके पास आये । बाल ने रस्सी काट दी जिससे वह पुरुष जमीन पर गिर गया। उस समय उसकी दोनों आँखें ऊपर चढ़ी हुई थीं और वह मच्छित था। दोनों कुमार उसके शरीर पर हवा करने लगे और उस पुरुष में चेतना आने लगी । मूर्छा दूर होने पर वह आँखे खोलकर चारों ओर देखने लगा, तब उसने अपने सामने दोनों कुमारों को देखा । उस समय कुमारों ने उससे पूछा--नीच पुरुषों की तरह गले में फांसी लगाकर आत्महत्या करने का यह अधम कार्य तुमने क्यों किया? तुम्हारे इतने पतित विचारों का कारण क्या है ? यदि तुम्हें बताने में कोई आपत्ति न हो तो हमें बतायो । उस पुरुष ने दीर्घ निश्वास लेते हुए कहा- मेरी कथा में कुछ रस नहीं है, अतः उसे छोड़िये । मेरी प्रात्मोत्पीडन की अग्नि को शान्त करने के लिये मैं फांसी लगाकर मरना चाहता था, आपने मुझे रोक कर किंचित् भी अच्छा नहीं किया, कृपाकर अब आप मुझे अपना कार्य करने दें, उस में बाधक न बनें। ऐसा कहकर वह पुरुष फिर वृक्ष से बंधी रस्सी से अपने को लटकाने लगा। बाल ने फिर उसे रोका और कहा-भाई ! हमारे आग्रह से तू अपनी कथा हमें सुना दे । फिर भी यदि हम तेरे दुःख-शमन करने का कोई उपाय न कर सके तो तेरी जैसी इच्छा हो वैसा करना । पुरुष ने कहा यदि आपका इतना ही आग्रह है तो सुनिये ॐ पृष्ठ १५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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