________________
१८४
उपमिति-भव-प्रपंच कथा
के प्रभाव से नियमतः उत्तम मनुष्य भूमि में होती है; जिसका वर्णन अग्रिम प्रस्तावों में किया जाएगा और तत्पश्चात् उसके बोध-प्रसंग का पूर्ण वर्णन किया जाएगा।
स च सदागमवाक्यमपेक्ष्य भो! जडजनाय च तेन निवेद्यते । बुधजनेन विचारपरायणस्तदनु भव्यजनः प्रतिबुध्यते ।।२।।
हे पाठको ! सदागम (श्रुतज्ञानी सदगुरु) के वचनानुसार यह घटनाक्रम संसार में संचरणशील जड बुद्धि वाली अगृहीतसकेता) को लक्ष्य कर कहा जा रहा है, जिसे सुनकर बूधजन (प्रज्ञाविशाला) और उसके पश्चात् विचारपरायण भव्यजन (भव्यपुरुष-सुमति) प्रतिबोध को प्राप्त करते हैं।
प्रस्तावेऽत्र निवेदितं तदतुलं संसार विस्फूजितं, धन्यानामिदमाकलय्य विरतिः संसारतो जायते । येषां त्वेष भवो विमूढ़मनसां भोः ! सुन्दरो भासते, ते नूनं पशवो न सन्ति मनुजाः कार्येण मन्यामहे ।। ३ ।।
इस (दूसरे) प्रस्ताव में प्रतिपादित इस अतुलनीय संसार के विस्तार (और उसमें स्थान-स्थान पर जाकर अनन्तकाल तक भोगे हुए दुःखों) के वर्णन को सुनकर भाग्यशाली पुरुषों को तो संसार से विरक्ति होती है, किन्तु जो विमूढ़ मन वाले (मूर्ख) प्राणी हैं उन्हें तो यह संसार का प्रपंच ही अच्छा लगता है। ऐसे मूढ । प्राणी अपने कार्यों से मनुष्य रूप में पशु ही हैं, ऐसा हम समझते हैं ।
उपमिति-भव-प्रपंचा कथा में संसारी जीव के चरित्र में तिर्यग्गति वर्णन नामक ब्दितीय प्रस्ताव पूर्ण हुआ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org