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प्रस्ताव २ : पंचाक्षपशु-संस्थान रूप प्रदान कर अनन्त प्रकार से है मेरी विडम्बना की। मैं वहाँ काल की अपेक्षा से निरन्तर तिर्यंच रूप में तीन पल्योपम और कुछ अधिक सात करोड़ वर्ष तक इस नगर में रहा। इस प्रकार पर्याप्त-अपर्याप्त, संज्ञी-असंज्ञो रूप में पंचाक्षपशु-संस्थान में भवितव्यता ने मुझे अनेक प्रकार की विडम्बनाएँ प्रदान की। [२२-३०] श्रुतिरसिक हरिण
एक बार भक्तिव्यता ने मुझे उसी नगर में हरिण का रूप प्रदान किया । हरिण के झुण्ड के साथ रहते हुए भय से चपल मेरी आँखें दशों दिशाओं में चकाचौंध होकर फिरती रहतीं। जंगल में बड़े-बड़े झाड़ों को फांदते हुए मैं जहां-तहां भटकता रहता । एक समय एक शिकारी का बच्चा बहुत मधुर स्वर से गीत गाने लगा । यह गीत इतना मधुर था कि हरिणों का पूरा झुण्ड उसके पास दौड़ा गया । दौड़ना और छलांग मारने की चेष्टा को छोड़कर हरिण झुण्ड स्तब्ध सा निश्चेष्ट हो गया। उनकी प्रांखें भी निश्चल हो गईं, उनकी सभी इन्द्रियों का व्यापार निवृत्त हो गया और मधुर गीत सुनते हुए उनकी अन्तरात्मा कर्णेन्द्रिय में ही रसमग्न हो गई । झण्ड के सब हरिणों को बिना हिले-डुले देखकर शिकारी हमारे पास आया। उसने धनुष पर बाण चढ़ाया, शिकारी की मुद्रा से निशाना बांधा, कन्धे को कुछ पीछे ले जाकर प्रत्यंचा को कान तक खींच कर तीर छोड़ दिया । उस तीर ने मुझे बींध दिया और मैं तुरन्त भूमि पर गिर गया। उस समय भवितव्यता द्वारा दी गई मेरी गोली भी घिस गई थी। यूथपति हाथी
हरिण के भव में काम में लाने योग्य मेरी एक भववेद्य गोली जब समाप्त हो गई तब मेरी स्त्री भवितव्यता ने मुझे दूसरी गोली दी। इस गोली के प्रभाव से मैं हाथी बना। धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ और अनुक्रम से हाथियों के एक झुण्ड का मुखिया बना । प्रकृति से सुन्दर कमलवनों में, सल्लकी के पत्रों से भरपूर वृक्षों के वनों में और अत्यन्त कमनीय जंगलों में मैं हथनियों के झुण्ड से घिरा हा रहता था और अपने चित्त को आनन्द के सागर में डुबकी लगवाता हया अपनी इच्छानुसार घूमता-फिरता था। एक दिन अकस्मात् हमारा झुण्ड भयभीत हुआ, जानवर इधर-उधर भागने लगे, बांस की गांठें फूटने से तड़-तड़ की आवाज होने लगी
और धुएं के बादल उठने लगे। यह क्या हुआ? देखने के लिये जैसे ही मैंने अपने पीछे देखा तो मालूम हुआ कि ज्वाला की लपटों से महाभयंकर दावानल मेरे पास आ गया है। दावानल को देखते ही मन में मौत का भय समा गया। मेरी शक्ति और पुरुषार्थ समाप्त हो गया, मेरा अहंकार चला गया, मैं दीन बन गया। स्वरक्षण का आश्रय लेकर, अपने झुण्ड को छोड़कर मैं एक तरफ भागने लगा। भागते हुए मैं थोड़ी दूर गया । वहां एक गांव के पास जानवरों को पानी पिलाने का जूना-पूराना
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