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________________ प्रस्ताव २ : एकाक्षनिवास नगर १७६ जिसका तू बहुत अभिमान करती है किन्तु तू मेरे पति का सामर्थ्य तो देख ! मेरा पति भूखा हो और उसे दर्द की जगह पर छोड़ दू तो वह चिपट कर अपनी पूरी शक्ति से पूरा खून चूस लेता है । मेरे पति की त्याग-शक्ति भी कुछ ऐसी वैसी नहीं है, यह भी देख । यदि कोई उसे हाथ से लेकर दबावे तो सब खून का वह उसे दान कर देता है।' [१-८] हे अगहीतसंकेता ! इस प्रकार मैं अपनी स्त्री के हाथ से दुःख पाते हुए भी जब वह ऐसा-वैसा कहकर मेरी हँसो उड़ाती तब तो मैं दुना दु:खी हो जाता। फिर एक बड़ी गोली देकर उसने महासमुद्र में मुझे शंख बनाया । जब शंख बजाने वाले ने मुझे छिन्न-भिन्न किया तब दुःख से मुझे रोता देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई। भिन्न-भिन्न रूपों में मेरी स्त्री के साथ उस बस्ती में रहते हुए और अनेक प्रकार की विडम्बना को सहन करते हुए असंख्यात काल बीत गया। [६-११] दूसरा मोहल्ला : त्रिकरण अन्यदा अपनी इच्छानुसार करने वाली भवितव्यता ने मुझे फिर एक गोली दी जिसके प्रभाव से मैं विकलाक्षनिवास नगर की दूसरी बस्ती में पहुँच गया। वहाँ पाठ लाख कुल कोटि प्रमाण असंख्य त्रिकरण नाम के गृहपति रहते हैं, मैं भी उनके साथ त्रिकरण (तीन इन्द्रियां) नामधारी जीव बन गया । वहाँ भी मुझे भवितव्यता ने जू, खटमल, मकोड़ा, कुथुप्रा और चिउटी आदि के विभिन्न रूपों में परिवर्तित किया । भूख से पीड़ित होकर मुझे यहाँ से वहाँ भटकता, बच्चों से पिसता और जलता देख कर मेरी स्त्री सन्तुष्ट होकर आनन्द में डूब जाती । इस बस्ती में भी मुझे नयी-नयी गोलियां देकर और मुझे नये-नये अनेक रूपों में परिवर्तित कर, असंख्य बार मुझे भवितव्यता ने इधर-उधर भटकाया। [१-३] तीसरा मोहल्ला : चतुरक्ष __एक दिन फिर मेरी स्त्री ने लीला पूर्वक दूसरी गोली देकर मुझे विकलाक्षनिवास नगर की तीसरी बस्ती में भेजा । वहाँ नौ लाख कुल कोटि प्रमाण चतुरक्ष (चार इन्द्रिय वाले) नामक असंख्य कुटुम्बी रहते हैं, मैं भी वहाँ जाकर चतुरक्ष कुटुम्बी बना । वहां पतंगी, मक्खी, डास, बिच्छु आदि के विभिन्न आकारों में मुझे परिवर्तित किया गया। इस बस्ती में रहते हुए विवेकहीन प्राणियों द्वारा किये गये मर्दन (मसलना, कुचलना) आदि से मैंने अनेक प्रकार के दुःख पाये । जब-जब मेरी पुरानी गोली घिसती तब-तब नई-ई गोलियां भवितव्यता मुझे इस बस्ती में भी देती रहती। इस प्रकार गोलियां देकर मुझे असंख्य रूपों में परिवर्तित करते हुए इस तीसरी बस्ती में भी उसने सुझ से नाटक करवाया। इन तीनों बस्तियों में बार-बार असंख्य रूप धारण करवा कर असंख्य हजार वर्षों तक मुझे भवितव्यता ने भटकाया। यहां भी मेरी पत्नी ने किसी समय पर्याप्तक और किसी समय अपर्याप्तक रूप से इन तीनों बस्तियों में मेरे से अनेक प्रकार के खेल कराये । [४-१०] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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