SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० उपमिति भव-प्रपंच कथा पर गिर पड़ें | मल-मूत्र को अपने शरीर से लिपटाकर दुर्गन्धित करें । फिर बालस्वभाव को छोड़कर कुमारपन धारण करें, भिन्न-भिन्न प्रकार के हाव भावादि पूर्ण खेल खेलें । सब प्रकार की कलानों में कुशलता प्राप्त करने के लिये अभ्यास करें । फिर कुमारावस्था छोड़कर युवावस्था को धारण करें । समस्त विवेकी प्राणियों में हास्य उत्पन्न करने वाले कटाक्षों से कामदेव महागुरु के उपदेशानुसार कार्य करें और ऐसा करने में अपने कुल-कलंक या अन्य कठिनाइयों की उपेक्षा करें। कामदेव जैसा कहे वैसा भिन्न-भिन्न प्रकार से विलास करें, नाचें और तूफानी मस्ती करें । परदारागमन जैसे ग्रनार्य (अनुचित ) कार्य करें। इस प्रकार युवावस्था पूर्ण कर मध्यम ( प्रौढ़ ) श्रवस्था धारण करें उसमें सात्विक प्रकृति, बुद्धि, पुरुषार्थ और पराक्रम बतायें। इस प्रकार मध्यम वय पूर्ण कर वृद्धावस्था धारण कर जिसमें कपाल पर रेखाएँ, सफेद बाल, अंग-भंग, अवयवों की शिथिलता और शरीर पर लार टपकती हुई मेल आदि के लगने से शरीर की प्रति विचित्र प्रवस्था का दृश्य उपस्थित करें । विकृत और विपरीत स्वभाव का आचरण करें। इस प्रकार जीवन के अनेक स्वरूपों से पूर्ण नाटक दिखाकर ग्रन्त में शरीर का त्यागकर मुर्दे का अभिनय करें । उसके बाद पुनः योनि के पर्द के पीछे चले जाव । वहाँ गर्भ रूपी कीचड़ में रहकर विविध दुःखों का अनुभव करें। फिर दूसरा रूप धारण कर नया नाटक दिखाने के लिये पर्दे से बाहर आवें । इसी प्रकार बार-बार पर्दे से निकलें, पर्दे के पीछे चले जावे । जनमें, मरें और अनन्त बार नये-नये नाटक दिखावं । I इस प्रकार आज्ञा देने वाली कालपरिणति महारानी संसार नामक नाटक में अभिनय करने वाले सभी पात्रों को एक क्षण भी निष्क्रिय नहीं बैठने देती । क्षरण-क्षरण में बेचारों से नये-नये रूप धारण करवाती है। बार-बार वेष परिवर्तन में साधनभूत नये-नये पुद्गल स्कन्ध नामक उपकरण जो प्रति चपल स्वभाव वाले हैं, उन पर भी यह महारानी अपनी सत्ता चलाती है और उन उपकरणों से भी न ेनये रूप धारण करवाती है । वे पात्र भी बेचारे सोचते हैं कि क्या करें ! जहाँ राजा भी इस रानी के वश में हैं वहाँ बचने की तो कोई संभावना ही नहीं । इस प्रकार मुक्त होने का कोई मार्ग न देखकर वे लाचार हो जाते हैं और महारानी जो प्रादेश देती है उनका पालन करते हुए, अनेक प्रकार के वेष धारण करते हुए अपनी आत्मविडम्बना को देखते रहते हैं । यह महारानी ऐसी प्रबल है कि महाराजा की उपस्थिति में भी स्पष्ट रूप से स्वकीय व्यवहार के द्वारा अपने प्रभाव की अधिकता को प्रदर्शित करती है। महाराजा का प्रभाव तो मात्र नाट्यशाला में संसार नामक नाटक में अभिनय करने वाले पात्रों से बारबार नये-नये रूप धारण करवाने में ही चलता है ( वह भी जब महारानी समयानुसार प्राज्ञा दे तभी ), परंतु इस महादेवी का प्रभाव तो नाट्य संसार से बाहर रही हुई निवृत्ति नगरी पर भी चलता है; क्योंकि उस निर्वृत्ति नगरी में जो लोग रहते हैं, उनको भी क्षण-क्षरण में * पृष्ठ ११० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy