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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
कर सकता । यदि कोई उनके कहे अनुसार करने का निषेध करे, रोकने का प्रयत्न भो करे तो वे किसी का कहना भी नहीं सुनते ।
[१०-१२ महाराजा अपने आनन्द के लिये जो संसार नामक नाटक करवाते हैं वह भी अत्यधिक विचित्र प्रकार का होता है । ये नाटक कई बार स्नेहियों के वियोग से करुण होते हैं और कई बार प्रेमियों के मिलन से सुन्दर (शृगारमय) दिखाई देते हैं। किसी समय अनेक रोगों से भरपूर, किसी समय दरिद्र दोष से पूर्ण, किसो समय आपत्ति में पड़े हुए प्राणी समूह के दृश्य से बहुत भयंकर लगते हैं। किसी समय सम्पत्ति के संयोग से अत्यन्त मनोहर लगते हैं तो कई बार उत्तम कुलोत्पन्न प्राणियों को अपने कुल की मर्यादा का त्यागकर, * अत्यन्त अधम कार्यो में प्रत्त दिखाकर अत्यधिक विस्मय उत्पन्न करते हैं । उच्च कुल में उत्पन्न किन्तु कुसंग से बुरे चाल-चलन में प्रवृत्त कुलटा स्त्रियाँ अपने पर अत्यन्त प्रेम रखने वाले पति का त्यागकर, तुच्छ मनुष्यों से प्रेम करते हुये दिखाकर अत्यधिक आश्चर्य उत्पन्न करती हैं। कई बार अपने धर्म-शास्त्रों का उल्लंघन कर उसकी मर्यादा को ताक पर रखकर काम करने वाले विषयासक्त पाखण्डियों के हँसने योग्य नृत्य से चमत्कृत करते हैं । ऐसी विचित्र घटनामों से पूर्ण यह संसार नाटक होता है जिसे महाराजा बिना किसी प्राकुलता के लीला पूर्वक करवाते हैं।
१३-१८] उस नाटक में राग-द्वेष नामक तबले होते हैं, जिन्हें दुष्टाभिसन्धि नामक पुरुष बजाता है। मान, क्रोध आदि उस्ताद गवैये अति मधुर कंठ से गाते हैं । महामोह नामक सूत्रधार नाटक का संचालन करता है । भोगाभिलाष नामक नन्दी और अनेक प्रकार की चेष्टानों द्वारा प्रानन्द और हास्य उत्पन्न करने वाला काम नामक विदूषक होता है । कृष्ण आदि लेश्या नाम के रंग उसके पात्रों को विभूषित करते हैं । योनि (यवनिका-पर्दा) में प्रवेश करने वाले पात्रों के लिये योनि (नेपथ्य के योग्य वस्त्रों के अनुरूप वेषभूषा) की व्यवस्था करता है। आहार, निद्रा, भय, मैथुन संज्ञा नामक मंजीरे होते हैं । लोकाकाश का उदर उस नाटक की विशाल रंगभूमि है और स्कन्ध नामक पुद्गल नाटकोपयोगी सामग्री का संचय है। ऐसी सामग्रो से परिपूर्ण उस नाटक में भिन्न-भिन्न पात्रों को नये-नये रूप देकर और बारम्बार उसमें परिवर्तन कर, सभी पात्रों की अनेक प्रकार से विडम्बना करते हुए कर्मपरिणाम महाराजा बहुत ही आनन्दित होते हैं। अधिक क्या कहें ! इस विश्व में कोई ऐसी वस्तु नहीं कि जिससे ये महाराजा अपने मनोनुकूल कार्य को सिद्ध न करते हों।
[१६-२६] महादेवी कालपरिगति
- तीन गण्डस्थलों से मद झरते हए जंगली हाथी जिस प्रकार अपनी इच्छानुसार सर्वत्र घूमता है और किसी के रोकने से नहीं रुकता, इच्छानुसार चेष्टाएं करता है उसी प्रकार अपनी इच्छानुसार कार्य करने वाले कर्मपरिणाम राजा के * पृष्ठ १०८
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