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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध
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प्रेरित होने पर ही योग्यता प्राप्त करते हैं । भावरोगों की शान्ति के लिए इस प्रकार के प्राणियों को कष्टसाध्य कोटि में मानना चाहिये ।
असाध्य अधिकारी
जिन प्राणियों के समक्ष ज्ञानत्रयी औषध की बात की जाए तो उन्हें ये बातें तनिक भी अच्छी नहीं लगतीं, शताधिक प्रयत्नों के पश्चात् यदि इन्हें ये औषधियाँ प्रदान की जाए तो भी वे उसे ग्रहण नहीं करते, उपदेष्टा (उपदेशकधमगुरु) पर भी विद्वेष रखते हैं, ऐसे प्राणी महापापी और भव्य होते हैं । फलतः ये भव्य प्राणी ज्ञानत्रयी औषध के लिए पूर्णतया योग्य होते | भाव-व्याधि का नाश करने में ऐसे जीव असाध्य की कोटि में आते हैं, ऐसा समझें ।
चेष्टाओं से अधिकारी का निर्णय
हे सौम्य ! भगवत् कृपा से हमने सुसाध्य, कष्टसाध्य और असाध्य प्राणियों के लक्षणों का ज्ञान प्राप्त किया है । इन्हीं लक्षणों के आधार पर हम जीव की योग्यता और अयोग्यता का अंकन करते हैं अर्थात् यह इसके योग्य अधिकारी है या नहीं ? सुसाध्य, कष्टसाध्य और असाध्य में से किस कोटि का है ? निश्चित करते हैं । जिस प्रकार तुमने अपना आत्म स्वरूप (आत्म - कथा ) कहा है वैसा ही हम भी तेरा स्वरूप देख रहे हैं । तू परिशीलना (नियन्त्रण ) योग्य कष्टसाध्य जीव है ।
तू कष्टसाध्य होने से जब तक तेरी रागादि व्याधियों का नाश करने के लिए हम असाधारण प्रयास नहीं करेंगे तब तक तेरी व्याधियों का शमन नहीं हो सकता । फलतः हे वत्स ! यदि तू इस समय सब प्रकार के सम्बन्धों का त्याग करने में शक्तिमान नहीं है तो फिलहाल इस विशाल सर्वज्ञ - शासन में शुद्धभाव पूर्वक मन को दृढ़ कर, बाह्य आकांक्षाओं का त्याग कर और अचिन्त्य (अनन्त) वीर्यातिशय से जो भगवान् समस्त दोषों का नाश करने में समर्थ हैं उन परमेश्वर को तू परिपूर्ण भक्ति से अपने हृदय में अनवरत स्थापित कर तथा देशविरति चारित्र में स्थिर रह । तू इस ज्ञान-दर्शन- चारित्र का प्रतिदिन अधिक से अधिक परिमाण में आराधन कर । तू इस रत्नत्रयी की उत्तरोत्तर क्रम से विशिष्ट, विशिष्टतर और विशिष्टतम प्रासेवना करता हुआ बढ़ता जा । इस ज्ञानत्रयी की विशिष्ट सेवना से ही तेरे रागद्वेषादि भवरोगों का उपशमन हो सकेगा, अन्यथा इन भावरोगों को नाश करने का अन्य कोई मार्ग नहीं है ।
इस प्रकार मार्गदेशना देने वाले सद्धर्माचार्य के हृदय में जो इस जीव के प्रति दया उत्पन्न होती है उसी को यहाँ तद्दया के नाम से जीव की परिचारिका वरित की गई है, ऐसा समझें । यह तद्दया परिचारिका परमार्थतः धर्माचार्य के
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