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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध
दूसरे द्वारपाल भी कहे गये हैं, उन्हें मोह, अज्ञान, लोभ आदि हैं, ऐसा तत्त्वचिन्तक समझें । [४६१-४६६]
उस राजभवन के राजाओं को प्राचार्य, मन्त्रियों को उपाध्याय, योद्धाओं को गण की चिन्ता करने वाले विद्वान् गीतार्थ और तलवर्गिक सरदारों को सामान्य साधु समझें । शान्त प्रकृति की स्थविरा स्त्रियों को प्रार्या साध्वी समझें । राजभवन की रक्षा करने में प्राणों की बाजी लगाने वाले सेनापतियों को श्रावक सघ समझें । विलासी स्त्रियों के वर्णन को भक्ति करने वाली श्राविकाएँ समझें । राजभवन में शब्द, रस, गन्ध आदि विषयों में आनन्द आने का जो वर्णन किया गया है, वैसा ही आनन्द वास्तविक विशुद्ध धर्म के प्रभाव से होता है । मुझे प्रतिबोध देने वाले आचार्यदेव को धर्मबोधकर समझें और उनकी मेरे ऊपर महाकृपा कर्म को तया सम्झें । मनीषीगण विमला लोक ग्रंजन (सुरमा) को ज्ञान, तत्त्वप्रीतिकर जल को सम्यक्त्व और महाकल्याणक भोजन को चारित्र सकें । सद्बुद्धि परिचारिका को अच्छे मार्ग की ओर प्रवृत्ति करवाने वाली शोभन बुद्धि और तीनों औषधियों को धारण करने वाले काष्ठपात्र को यह समिति भव - प्रपच कथा समझें ।
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इस प्रकार संक्षिप्त उपनय के द्वारा कथा की सामान्य रूप-रेखा प्रस्तुत की । अब इसी उपनय-योजना को विस्तार के साथ गद्य में प्रस्तुत करता हूँ । [४७०-४७७]
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