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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
राजमन्दिर में सपुण्यक की स्थिति
३७. उसके बाद सपूण्यक सदबुद्धि और तहया के साथ राजमन्दिर में रहने लगा। उसी दिन से उस में जो परिवर्तन आया और वहाँ उसकी जो स्थिति बनी, उसका वर्णन करता हूँ। अब वह शरीर को हानि पहुंचाने वाला अपथ्य भोजन नहीं करता जिससे उसके शरीर में कोई बड़ी पीड़ा तो होती ही नहीं। कभी पूर्व दोष से छोटी-मोटी सहज पीड़ा हो भी जाती तो वह भी थोड़ी देर में ठाक हो जाती । अब उसे किसी प्रकार की आकांक्षा (इच्छा) न होने से वह लोक-व्यापार का विचार नहीं करता और अत्यन्त आनन्द से सर्वदा विमलालोक अञ्जन अपनी आँखों में लगाता, बिना थकान के प्रसन्नवित्त होकर तत्त्वप्रीतिकर जल प्रतिदिन पीता और महाकल्याणक भोजन निरन्तर पेट भर करता । अञ्जन, जल और भोजन के प्रयोग से प्रतिक्षण जैसे उसके बल, धैर्य और स्वास्थ्य में वृद्धि होने लगी वैसे ही रूप, शक्ति, प्रसन्नता, बुद्धि और इन्द्रियों की पटुता में भी वृद्धि होने लगी। उसके शरीर में बहुत से रोग होने से वह अभी तक पूर्ण स्वस्थ्य तो नहीं हुआ था, फिर भी उसके शरीर में बहत भारी परिवर्तन हआ दिखाई दे रहा था। अभी तक जो वह भूतप्रेत जैसा अत्यन्त भयंकर और कुरूप लगता था और किसी को उसके सामने देखना भी अच्छा नहीं लगता था, किन्तु अब वह सुन्दर मनुष्य का आकार धारण करने लगा था। पहले दरिद्रपन में तुच्छता, अधैर्य, लोलुपता, शोक, मोह, भ्रम आदि क्षुद्र भावों की अधिकता थी, वे तीनों औषधियों के सेवन से प्रायः नष्ट हो चुके थे और वे उसे तनिक भी पाड़ित नहीं करते थे, जिससे वह निरन्तर आनन्दित मन वाला बन गया था। [४२२-४३०]
औषधदान निर्णय : कथा की उत्पत्ति का प्रसंग
३८. एक दिन अत्यन्त प्रसन्न चित्त होकर उसने सद्बुद्धि से पूछा-'भद्रे ! ये तीनों सुन्दर औषधिया मुझे किस कर्म के योग से मिली होंगी?' सद्बुद्धि ने कहाभाई ! पहले जो दिया जाता है, वही वापस मिलता है, ऐसी लोक में कहावत है। इससे ऐसा लगता है कि पहले कभी तूने अन्य किसी को ये वस्तुएँ दी होंगी।' सदबुद्धि का उत्तर सुनकर सपुण्यक सोचने लगा--यदि किसी को देने से ही वापस मिलती हो तो मैं अनेक प्रकार से सकल कल्याणकारी इन तीनों औषधियों का किसी योग्य पात्रों को प्रचुर दान दू, जिससे भविष्य में अगले जन्मों में वे मुझे अक्षय रूप में मिलती रहें। [431-434]
___३६. उसके म. के इस विचार को सुस्थित महाराज ने सातवीं मंजिल में बैठे ही जान लिया। धर्मबोधकर को अतिशय प्रिय लगा, तद्दया ने उसे बधाई दी, सब लोगों ने उसकी प्रशंसा की और सद्बुद्धि का तो वह अत्यन्त प्रिय हो गया। इस
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