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प्राशीर्वचन
प्राचार्य श्री पद्मसागर सूरि जी म. सा.
__ मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि पूज्य विद्वान् शिरोमरिण श्री सिद्धर्षि गरिण की अपूर्व रचना उपमिति-भव-प्रपञ्च कथा का हिन्दी अनुवाद शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है।
हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में इस महान ग्रन्थ का प्रवेश जैन जगत् के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होगा।
वैराग्य से परिपूर्ण इस ग्रन्थ के स्वाध्याय से जनमानस में दर्शन शुद्धि का परम साधन स्वरूप परमात्म-भक्ति एवं जिनपूजा तथा धर्मश्रद्धा के गुणों में अभिवृद्धि होगी। जीवन के गहन तत्त्वों की खोज में उन्हें ज्ञान का एक नया प्रकाश मिलेगा। साथ ही ज्ञानियों के विचारों को जीवन के प्राचार में प्रतिष्ठित करने की प्रेरणा भी मिलेगी। इस ग्रन्थ के पठन से रत्नत्रयी की प्राप्ति और शुद्धि सरल/ सहज बनेगी, ऐसी मेरी श्रद्धा है।
इस ग्रन्थ के अनुवादक, सम्पादक व प्रकाशकों को मैं इस कार्य के लिये हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
इस ग्रन्थ के स्वाध्याय द्वारा अनेक जीवों के हृदय-पटल में सद्भावना और मानवता के गुण विकसित हों, यही मेरी शुभ-कामना है।
दि0 30-c-४ पाली (राज)
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