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________________ उपमिति भव-प्रपंच कथा ही रखा जाय तो कोई बाधा नहीं प्राती, उचित ही है । और उनकी बुद्धि अच्छी होने से उन्हें सुमति भी कहा जा सकता है । ४३२ सदागम ( सर्वज्ञ - भाषित श्रागम का प्रतिपादक ) को पुरुष के आकार में बतलाने वाले श्री समन्तभद्राचार्य ने इसीलिये पुण्डरीक को मनुजगति निवासी लघुकर्मी सर्वगुणसम्पन्न सुमति / भव्यपुरुष की उपमा प्रदान की है, वह उचित ही है । जैसे महाभद्रा ने समन्तभद्राचार्य के वचन सुनकर, तुरन्त प्रतिबोधित होकर दीक्षा ग्रहण करली और प्रज्ञाविशाला बन गई, उसी प्रकार संसार में उत्तम पुरुष सर्वज्ञ - प्ररूपित ग्रागम का उपदेश सुनकर तत्त्व का सम्यक् बोध प्राप्त करते हैं और उसे प्राथमिकता देते हुए शीघ्र ही साधु बन जाते हैं । परमार्थ से ऐसे पुरुषों को ही प्रज्ञाविशाल ( विशाल बुद्धि वैभव वाले ) कहा जाता है । * से सुललिता (गृहीतसंकेता ) को जैसे पूर्व भव के अभ्यास के कारण महाभद्रा से गुरणकारी स्नेह-सम्बन्ध हुआ, वैसे ही संसार के कुछ भारीकर्मी जीवों का जब भविष्य सुधरने वाला होता है तब ऐसे भव्य प्राणियों का किसी न किसी सुसाधु अवश्य सम्बन्ध होता है और ऐसा सम्बन्ध उसके गुण-वृद्धि का कारण होता है क्योंकि, कल्याण - मित्र का योग सम्पत्ति को प्राप्त कराने वाला, योग्यता उत्पन्न करने वाला, गुण-रत्नों की खान भविष्य की कल्याण - परम्परा को सूचित करने वाला और जैसे अमृत का योग विष को नष्ट करता है वैसे ही कर्मरूपी महाकठिन विष को नष्ट करने वाला होता है । जैसे महाभद्रा साध्वी ने समन्तभद्राचार्य के माध्यम से अपने उपदेश द्वारा सुललिता के हृदय में सदागम के प्रति भक्ति उत्पन्न की और पुण्डरीक की धाय बनकर उसका सदागम / श्राचार्य से परिचय करवाया वैसे ही परहित में तत्पर सुसाधु आज भी स्वभाव से ही गुरुकर्मी भव्य प्राणियों के प्रति प्रकृत्रिम स्नेहभाव रखते हैं और किसी भी प्रकार उनमें भगवान् के आगमों के प्रति भक्ति उत्पन्न करते हैं । क्योंकि, किसी भी प्रकार यदि एक बार सर्वज्ञ के प्रागम पर भक्ति उत्पन्न हो जाय तो वह कर्मरूपी कचरे को धोकर साफ करने वाली, जीवरत्न को विशुद्ध बनाने वाली, भव-प्रपंच से मुक्त करने वाली, तत्त्वमार्ग को बताने वाली और परमपद को प्राप्त करवाने वाली होती है । अनुसुन्दर चक्रवर्ती ने स्वयं को ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् सुललिता और पुण्डरीक को संवेग उत्पन्न कराने हेतु उनके समक्ष अपने संसार भ्रमण का सम्पूर्ण चरित्र उपमा / रूपक द्वारा विस्तार से सुनाया, वह भी प्रायः सभी जीवों पर समान रूप से घटित होता है । जब भी कुछ जीव मोक्ष जाते हैं तब वे लोकस्थिति के सार्वजनिक नियोग के अनुसार और कर्मपरिणाम की प्राज्ञा से ही जाते हैं और उतने ही जीव * पृष्ठ ७७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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