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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
जाता है। अतएव काम और अर्थ सम्बन्धी कथा कभी भी नहीं करनी चाहिये। ऐसा कौन बुद्धिमान होगा जो घाव पर नमक छिड़केगा? परोपकारी मनीषियों को ऐसा कार्य करना चाहिये कि जिससे समस्त प्राणियों का उभय लोक में हितसाधन हो । यद्यपि काम और अर्थ की कथा लोगों को प्रिय है, तथापि इन कथाओं के परिणाम अत्यन्त दारुण हैं। अतः विद्वानों को इन दोनों कथाओं का त्याग करना चाहिये। ऐसा समझकर उभय लोक की हित-कामना से जो अमृतोपम शुद्ध धर्म कथा को कहते हैं, वे धन्य हैं। [३६-४५] संकीर्ण कथा का आशय
आकर्षण के साथ सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने वाली होने से संकीर्ण कथा को कितने ही प्राचार्य सत्कथा की कोटि में रखते हैं। जिस किसी भी प्रकार से प्राणियों को प्रतिबोधित किया जा सके, हितेच्छु उपदेशकों को उसी कथा का आश्रय लेकर उसे उपदेश देने का प्रयत्न करना चाहिये । सांसारिक मोहग्रस्त मुग्ध प्राणियों के मन में एकाएक धर्म प्रतिभासित नहीं होता, वे धर्म की ओर आकर्षित नहीं होते, अतः अर्थ और काम की कथा के द्वारा उसके मन को आकृष्ट करना चाहिये। अर्थ और काम कथा के माध्यम से उन्हें धर्म कथा की ओर प्रेरित करने पर वे उसे ग्रहण करने में समर्थ हो जाते हैं। इसीलिये संकीर्ण कथा को भी विक्षेप द्वारा सत्कथा कहा गया है। वैसे तो यह उपमिति-भव-प्रपंच कथा शुद्ध धर्म कथा ही है, परन्तु किसी-किसी स्थान पर वह संकीर्ण कथा का रूप भी ग्रहण करती है, फिर भी वहाँ पर वह धर्म कथा के गुण की अपेक्षा रखती है, अतः इसे धर्म कथा ही समझना चाहिये । (४६-५०) भाषा-विचार
संस्कृत और प्राकृत दोनों ही प्रधान भाषायें हैं। उनमें भी पण्डितंमन्य विद्वानों का झुकाव संस्कृत की ओर अधिक है। यद्यपि प्राकृत भाषा सहज भाव से बाल जीवों को सद्बोध कराने वाली और कर्ण-प्रिय है, फिर भी वह अहम्मन्य पण्डितों को वैसी नहीं लगती। साधनों के विद्यमान होने पर सब का मनोरंजन करना चाहिये । इसलिए उनके अनुरोध को ध्यान में रखकर, इस ग्रन्थ की रचना संस्कृत भाषा में ही करूँगा । संस्कृत में रचना होते हुए भी वह बड़े-बड़े वाक्यों और अप्रसिद्ध अतिगूढ़ शब्दों वाली न होकर, सर्व प्राणियों को समझ में आने वाली (लोकप्रिय) भाषा होगी। (५१-५४) कथा-शरीर-अन्तरंग
'उपमिति-भव-प्रपंच कथा' इस नाम से इसका कथा-शरीर स्पष्ट है। इसमें भव-प्रपंच (संसार के विस्तार) का वर्णन है। यह संसार का विस्तार, यद्यपि सभी लोगों द्वारा अनुभव किया जाता है, फिर भी परोक्ष जैसा लगता है, इसलिये इसका विस्तार पूर्वक विशेष वर्णन आवश्यक है। किसी प्रकार की भ्रांति न हो और स्मृति
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