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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
सुललिता ने महाभद्रा से पूछा-भगवति ! यह भारी आवाज और गड़गड़ाहट कैसी है ?
महाभद्रा ने प्राचार्य की अोर दृष्टिपात करते हुए कहा-मुझे तो कुछ भी ज्ञात नहीं है।
प्राचार्य ने देखा कि सुललिता और पुण्डरीक को प्रतिबोधित करने का यह अच्छा अवसर है, अतः वे बोले-अरे महाभद्रा ! क्या तुझे पता नहीं कि मनुजगति नामक प्रदेश में विख्यात महाविदेह नामक बाजार में हम सब अभी बैठे हैं । संसारी जीव नामक चोर आज चोरी के माल के साथ पकड़ा गया है। दुष्टाशय आदि दण्डपाशिकों (सिपाहियों) ने उसे पकड़ कर, बांधकर, चोरी के माल साथ कर्मपरिणाम महाराजा के सन्मुख प्रस्तुत किया है । कर्मपरिणाम महाराज ने कालपरिणति, स्वभाव आदि से विचार-विमर्श कर चोर को फांसी का दण्ड दे दिया है । अभी अनेक राजपुरुष संसारी जीव को जन-कोलाहल के बीच बाजार में से होकर, नगर से बाहर निकल कर पापी-पिंजर नामक वधस्थल पर ले जा रहे हैं। वहाँ लेजाकर उसे खूब मारापीटा जायगा और उसे मृत्यु-दण्ड दिया जायेगा । इसी कारण यह प्रबल कोलाहल हो रहा है।
भगवान् की बात सुनकर सुललिता भोंचक्की हो गई। महाभद्रा की तरफ दृष्टिपात करते हुए उस भोली ने पूछ ही लिया---भगवति ! हम तो शंखपुर में बैठे हैं, यह मनुजगति तो नहीं ? हम इस समय चित्तरम उद्यान में बैठे हैं, यह महाविदेह बाजार कैसे हो गया ? यहाँ के राजा श्रीगर्भ हैं, कर्मपरिणाम नहीं ? फिर प्राचार्यप्रवर यह सब क्या कह रहे हैं ?
यह सुनकर प्राचार्यश्री ने कहा--धर्मशीला सुललिता ! तुम अगृहीतसंकेता हो, तुम्हें मेरी बात का गूढ अर्थ समझ में नहीं आया।
सूललिता सोचने लगी कि केवली भगवान ने तो मेरा नाम ही बदल दिया, दूसरा नामकरण कर दिया । फिर वह चप होकर बैठ गई, पर उसके मुख पर भोलेपन और विस्मय के भाव स्पष्टतः झलक रहे थे, मानो भगवान् की बात का परमार्थ उसे तनिक भी समझ में न आया हो। वध-मोचन का उपाय : कथा पर संप्रत्यय
विचक्षणा महाभद्रा ने भगवान के कथन के रहस्य को समझ लिया कि भगवान ने किसी पापी संसारी जीव के नरक गति में जाने का स्पष्ट निर्देश किया है । वह दया के तीव्र आवेग के कारण करुणा से ओत-प्रोत हो गई। वह बोलीभगवन् ! आपने कहा कि चोर को मृत्यु-दण्ड दिया गया है, पर क्या चोर इस दण्ड से किसी प्रकार मुक्त नहीं हो सकता ?
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