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________________ १३. महाभद्रा और सुललिता महाभद्रा का परिचय हे अगहीतसंकेता! तुम्हें स्मरण होगा कि जब मैं गुणधारण के भव में था तब कन्दमुनि ने मुझे उपदेश दिया था । उस भव में मेरी पत्नी मदनमंजरी थी और मेरा मित्र कुलन्धर था। इनको भी भवितव्यता ने संसार में बहत भटकाया और अनेक प्रकार के अच्छे-बुरे रूपों में उन्हें उत्पन्न किया । कन्दमुनि ने एक बार बहलिका के सम्पर्क से छल-कपट किया था, अतः भवितव्यता कन्दमुनि के जीव को सुकच्छविजय के हरिपुर नगर में ले आयी। इस नगर में भीमरथ राजा और सुभद्रा रानी थी जिनके समन्तभद्र नामक एक पुत्र था। भवितव्यता ने सुभद्रा रानी की कूख में कन्दमुनि के जीव को प्रवेश कराया और छल-कपट माया के कारण उसे स्त्रीलिंग प्रदान किया । अनुक्रम से उसका जन्म पुत्री के रूप में हुआ और माता-पिता ने उसका नाम महाभद्रा रखा। राजकुमार समन्तभद्र को एक बार सुघोष मुनि के दर्शन हुए। उनका धर्मोपदेश सुनकर राजकुमार को वैराग्य हो गया। माता-पिता की आज्ञा लेकर उसने दीक्षा ले ली, अभ्यास किया और थोड़े ही समय में द्वादशांगी का ज्ञाता महाज्ञानी गीतार्थ हो गया। योग्य समझ कर गुरु महाराज ने उसे प्राचार्य पद पर स्थापित किया और वह संसार में समन्तभद्राचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुग्रा ।* ___ अनुक्रम से राजपुत्री महाभद्रा भी युवती हुई। माता-पिता ने उसे गन्धपुर नगर के राजा रविप्रभ और पद्मावती रानी के पुत्र दिवाकर से विवाहित किया । कारणवश दिवाकर की मृत्यु हो गई । समन्तभद्राचार्य ने योग्य अवसर जानकर अपने संसारी रिश्ते की बहिन महाभद्रा को योग्य उपदेश दिया, संसार की अस्थिरता और आत्महितकारी मोक्ष का यथार्थ मार्ग बतलाया। प्रतिबद्ध होकर महाभद्रा ने भागवती दीक्षा ले ली। विद्वान् भाई की बहिन भी विदुषी हुई । इसने भी गहन अध्ययन किया और थोड़े ही समय में द्वादशांगी की ज्ञाता, गीतार्थ, शक्तिशालिनी साध्वी बन गई। उसकी योग्यता को देखकर प्राचार्य ने उसे प्रवर्तिनी के पद पर स्थापित कर दिया। * पृष्ठ ७३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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