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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
निवास स्थान को तोड़कर, चित्तवृत्ति अटवी को स्वच्छ किया गया । शत्रुओं के नाश और विजय के उपलक्ष में उन्हें जयध्वज प्रदान किया गया । भागे हुए शत्रुओं में से कुछ का नाश/क्षय हुआ और कुछ बगुले की तरह चुपचाप छुपकर (उपशान्त होकर) बैठ गये। [३६६-३६८]
लग्न-समारम्भ
तदनन्तर अत्यन्त आनन्द पूर्वक मेरा अतिमनोरम विवाह-महोत्सव प्रारम्भ हुआ। मेरे इस उत्सव को देखकर मेरे अन्तरंग बन्धु बहुत हर्षित हुए। पहले प्रष्ट मातृका की स्थापना की गई और उनकी विधिवत् पूजा की गई । हे भद्रे ! तब सबोध मन्त्री ने उन आठ माताओं की अलग-अलग क्या शक्ति है ? इसका निम्नप्रकार से वर्णन किया
१. जब मुनि लोग जैनपुर में चलते हैं तब इस माता के प्रभाव से ३३ हाथ दूर तक दृष्टि रखकर चलते हैं, जिससे मार्ग में किसी प्रकार का व्याक्षेप न हो और किसी जीव की विराधना न हो (ईर्या समिति)।
२. यह माता अपने प्रभाव से मुनियों से सद्वाक्य, पवित्र वाक्य ही बुलवाती है। वे यथातथ्य, हितकारी और अत्यन्त सीमित शब्दों में बोलते हैं (भाषा समिति)।
३. तीसरी माता भोजन का समय होने पर मुनियों से सर्वप्रकार के दोषरहित निर्दोष भोजन की शोध करवाती है और उसे सीमित मात्रा में ही खाने की आज्ञा देती है (एषणा समिति)।
४. चौथी माता के प्रभाव से मुनि लोग किसी पात्र आदि वस्तु को लेने या रखने के समय उसे अच्छी तरह देखकर, प्रमार्जित कर सावधानी से लेते या रखते हैं (प्रादानभाण्डमात्रनिक्षेपण समिति)।
५. पाँचवीं माता मुनियों से बचा हुआ पाहार, मल, मूत्र आदि का त्याग करना हो तो पहले शुद्ध निर्जीव भूमि देखकर त्याग करवाती है, जिससे किसी जीव को त्रास न हो (परिष्ठापनिका समिति)।
६. छठी माता के प्रभाव से साधुओं का मन निरन्तर आकुल-व्याकुलता से रहित रहता है। यदि उनके मन में कोई दोष उत्पन्न हो गये हों तो इसके प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं (मनोगुप्ति)।
७. यह माता अपने प्रभाव स साधुओं से कारणों के अभाव में सर्वदा मौन धारण करवाती है । कारणवश बोलना आवश्यक हो तो वे दोषरहित और बहुत संक्षिप्त ही बोलते हैं (वचनगुप्ति)।
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