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उपमिति भव-प्रपंच कथा
इसके पश्चात् की घटनायें तो राजन् ! तुम जानते ही हो । कल रात तेरी भावनाओं में जो वृद्धि हुई और हर्षोल्लास हुआ उसका कारण अब तुम्हारी समझ में निःसन्देह रूप से आ गया होगा । [ ३५०-३५८ ]
अन्तरंग शत्रुओं की वर्तमान और भविष्य की स्थिति
गुणधारण--भगवन् ! पापोदय, ज्ञानसंवरण, महामोहादि शत्रु अब क्या कर रहे हैं ?
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प्राचार्य - श्रभी वे मात्र समय व्यतीत कर रहे हैं और अवसर की ताक में बैठे हैं । जो खिंचकर के बाहर आये वे नष्ट हो गये ( उदय में प्राये वे भोग कर समाप्त हो गये), जो तेरी चित्तवृत्ति में निर्बल होकर लुक-छिपकर बैठे हैं (उपशमभाव को प्राप्त हैं ) वे अवसर की प्रतीक्षा में हैं और अवसर श्राने पर ये मात्सर्यग्रस्त सभी संगठित होकर भीषण युद्ध के लिये एकदम तैयार हो जायेंगे । हे महाराज ! ऐसा अवसर आने पर तुम्हें सद्बोध मन्त्री के परामर्श के अनुसार कार्य करना चाहिये । उसके सहयोग से चारित्रधर्मराज के एक-एक योद्धा को लेकर तुझे प्रतिपक्षी सेना के एक-एक योद्धा पर भिन्न-भिन्न ढंग से प्रहार कर उन्हें पराजित करना चाहिये । [३५६-३६२]
गुणधारण --जैसी भगवान् की आज्ञा ।
इसके बाद मासकल्प ( शेषकाल ) समाप्त होने पर प्राचार्य प्रवर अन्यत्र विहार कर गये ।
६. नौ कन्याओं से विवाह : उत्थान
धर्म, शुक्ल पुरुष और पीतादि परिचारिकायें
आचार्यश्री के उपदेशानुसार मैं विशेष रूप से प्रनुष्ठान करने लगा जिससे मेरा अन्तःकरण अधिकाधिक शुद्ध होता गया । मेरा शरीर भी कसौटी पर चढ़ा और सद्बोध मन्त्री को मैंने अपनी चित्तवृत्ति में प्रवेश करवाया ।
फिर एक दिन मन्त्री ने मुझे समाधि नामक दो पुरुष बताये । उनका रंग श्वेत था । वे अत्यन्त सुन्दर स्वरूपवान दर्शनीय और सुखदायी थे । उनका परिचय कराते हुए सद्बोध ने कहा- देव ! इन दोनों में से एक का नाम धर्म और दूसरे का नाम शुक्ल है । समाधि इनका सामान्य नाम ( गोत्र ) है । ये दोनों तुम्हारे अन्तरंग
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