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________________ ३५४ सम्पूर्ण सुख का हेतु दस कन्यानों से लग्न प्राचार्य - राजन् ! जब तुम्हारा विवाह दस कन्याओं से होगा, जब उनके साथ तुम्हारा अत्यन्त सद्भावपूर्वक प्रेम-सम्बन्ध होगा, जब तुम इनके साथ प्रत्यन्त श्रानन्दपूर्वक उद्दाम लीला - विलास करोगे तब तुम्हें जो सुख होगा उसकी अपेक्षा से तुम्हारा वर्तमान सुख तो सुख का अंश मात्र ही है । गुणधारण - प्रभो ! मैं तो मदनमंजरी का भी त्याग कर आपके चरणकमलों में दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ तब फिर मेरा नयी दस कन्याओं से परिय कैसे होगा ? आचार्य - तुझे अवश्य ही इन कन्याओं से परिणय करना होगा । उनसे संयुक्त होने पर ही * तुम दीक्षा ले सकोगे । उनके साथ दीक्षा लेने में कोई कठिनाई या कोई विरोध नहीं होगा । फिर उनके बिना दीक्षा का अर्थ भी क्या है ? उनके समान कुटुम्बियों के प्रभाव में तेरा दीक्षा लेना व्यर्थ है । उनके बिना तेरा विकास नहीं हो सकता । अतः पहले तुम इन दस कन्याओं से विवाह करो, फिर नियमपूर्वक मैं तुम्हें दीक्षित करूंगा । उपमिति भव-प्रपंच कथा 'भगवन् ! आप यह क्या कह रहे हैं ?' मैं अपने मन में चकित हो रहा था तभी कन्दमुनि ने प्रश्न किया — गुरुदेव ! गुणधाररण को जिन कन्याओं से विवाह करना है, वे कौन-सी हैं ? आचार्य - यह तो बहुत प्राचीन वृत्तान्त है । मैं पहले तुम्हें सुना चुका हूँ, वे ही दस कन्यायें हैं, नवीन नहीं हैं । कन्दमुनि -- गुरुदेव ! मैं तो यह बात भूल गया हूँ । मुझ पर अनुग्रह कर यह सब पुनः बताने की कृपा करें कि उन कन्याओं के क्या नाम हैं ? वे कहाँ रहती हैं ? कौन - कौन उनके सम्बन्धी हैं ? प्राचार्य - सुनो ! चित्तसौन्दर्य नगर के राजा शुभपरिणाम की निष्प्रकंपता और चारुता नामक दो रानियों से उत्पन्न क्रमशः क्षान्ति और दया नामक दो कन्याएँ हैं । शुभ्रमानस नगर के शुभाभिसन्धि राजा की वरता और वर्यता नामक दो रानियों से उत्पन्न मृदुता और सत्यता नामक दो कन्याएँ हैं । विशदमानस नगर के शुद्धाभिसन्धि राजा की शुद्धता और पापभीरुता नामक दो रानियों से उत्पन्न ऋजुता और अचौर्यता नामक दो कन्याएँ हैं । शुभ्रचित्तपुर नगर के सदाशय राजा की वरेण्यता रानी से उत्पन्न ब्रह्मरति और मुक्तता नामक दो कन्यायें हैं । सम्यग्दर्शन की अपनी एक मानसी कन्या विद्या है । पृष्ठ ७१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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