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प्रस्ताव ८ : गुणधारण-मदन मंजरी - विवाह
मार डालने की इच्छा की, यह बहुत ही बुरा किया, इसी महापाप के फलस्वरूप स्तम्भत हुए हैं । यह महापुरुष ही हमारा स्वामी है, हम सब उसके सेवक हैं । क्षमा श्रौर आनन्द
इस विचार के आते ही उनकी ईर्ष्याग्नि शान्त हो गई, अतः जिसने उनको स्तम्भित किया था, उसी ने उन्हें तत्क्षरग पुनः स्वतन्त्र कर दिया । स्वतन्त्र होते ही वे सब नभचारी तुरन्त नीचे आये और मेरे चरणों में गिर पड़े। उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़कर ललाट पर लगाकर कहा - 'नाथ ! हमारे अपराध क्षमा करें | अब हम आपके दास हैं । हमारी जो भूल हुई उसके लिये क्षमा प्रार्थी हैं ।' हे भद्रे ! उनकी क्षमायाचना को देखकर कनकोदर राजा का अभिमान भी नष्ट हुआ जिससे उनकी सेना भी स्तम्भन से मुक्त हुई । सभी विद्याधर हाथ जोड़कर परस्पर क्षमायाचना करने लगे । सभी की आँखों में हर्ष के आँसू आ गये । सब परस्पर सगे भाइयों के समान गले मिले । [ १०१ - १११]
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मधुवारण आदि को आनन्द
किसी के द्वारा मेरे पिताजी (मधुवारण राजा) को भी ये समाचार ज्ञात हुए और वे भी उस प्रह्लाद मन्दिर उद्यान में प्रा पहुँचे । दूर से उनको श्राता देख मैं खड़ा हो गया, मेरे साथ अन्य सभी विद्याधर उनका सन्मान करने खड़े हो गये । मैंने और मदनमंजरी ने पिताजी के चरण-कमलों में मस्तक झुकाकर प्रणाम किया । मेरी माताजी श्रादि सभी अन्तःपुरवासी, मन्त्रि मण्डल और बहुत से नगर निवासी भी यहाँ आ गये थे । हम सब ने सब को यथोचित नमन आदि किया । विद्याधरों ने भी उनका यथायोग्य सन्मान किया जिससे सभी हर्षित हुए । [११२-११४]*
मेरे पिताजी प्रत्यधिक आनन्द से रोमांचित हो गये, आनन्दाश्रमों से उनके नेत्र भीग गये और अत्यन्त हर्ष से मुझ को आलिंगन में जकड़ लिया । [११५]
मित्र कुलन्धर ने विनयावनत होकर उस समय पिताजी को सब वृत्तान्त संक्षेप में सुनाया जिससे उपस्थित समुदाय को पूरी घटना की जानकारी हो गई । सभी विद्याधर हाथ जोड़कर मेरे पिताजी से कहने लगे - प्रभो ! गुणधारण कुमार हमारा देव है, हमारा स्वामी है । आपके इस चिरंजीवी पुत्र ने हमें जीवन-दान दिया है । यह धन्य है | कृतार्थ है । महाभाग्यवान है । इन्होंने इस पृथ्वी को सुशोभित किया है । इनमें अकल्पनीय शक्ति-पराक्रम है । इनके जैसा अन्य गुणवान मनुष्य इस संसार में हमारे देखने में नहीं आया । [ ११६-११८]
विद्याधरों को मेरी स्तुति करते देख मेरे पिताजी और माता सुमालिनी अत्यन्त प्रसन्न हुए । मेरे वैभव को देखकर सम्पूर्ण राजमन्दिर निवासी परिजन,
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