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________________ प्रस्ताव ८ : मदनमंजरी ३२३ चिन्तातुर हो गये और बोले'इसे शीघ्र राजमन्दिर में ले जायो और इसकी मानसिक स्थिति से कहीं इसका शरीर भी अस्वस्थ न हो जाय इसका ध्यान रखो।' पति के आदेश से मैं शीघ्र ही पुत्री को लेकर स्वयंवर मंडप से निकली और राजभवन में प्रा गई। मेरे पास बैठी हुई मदनमंजरी की सखी इस लवलिका को भी इस घटना से बहत चिन्ता हुई । वह बोली-माताजी! अब आपने मेरी सखी के विवाह के लिये क्या उपाय सोचा है ? मुझे तो कुछ नहीं सूझता। मैंने कहा- लवलिका ! हमें भी कुछ उपाय नहीं सूझता । तेरी सखी तो बहुत गर्वीली है, इसे कोई राजा भी पसंद नहीं आता । अब तू ही इससे पूछकर कोई उपाय ढूढ़ । हमारी दृष्टि में जितने भी उपाय थे, उन्हें हमने कार्यान्वित कर देख लिया है । हम मन्दभाग्यों को तो अब कोई उपाय दिखाई नहीं देता। कहते-कहते मेरे नेत्रों से मोतियों की माला के समान बड़े-बड़े आँसू टपक पड़े और मैं रोने लगी। लवलिका ने मुझे सान्त्वना देते हुए कहा- माताजी ! आप दुःखी न हों। मैं अपनी सहेली से पूछूगी । वह स्वयं विनीत-शिरोमणि है, अतः माता-पिता को संतप्त करने वाली नहीं बनेगी । मेरे पूछने पर वह अवश्य इस विषय में कुछ न कुछ बतायेगी। ऐसा उत्तर देकर लवलिका ने मुझे तनिक आश्वस्त किया। ___ उस समय स्वयंवर मण्डप में एकाएक ही खलबली मची। किसी भी विद्याधर राजा का वरण किये बिना जब मदनमंजरी को वापस लौटते देखा, तब सभी राजाओं को ऐसा लगा जैसे उनका सर्वस्व अपहरण कर लिया गया हो । रत्न भण्डार के लुट जाने पर व्यक्ति की जैसी स्थिति होती है, या मुद्गर की मार से जैसे विषण्ण वदन हो जाते हैं, अथवा आकाश मार्ग में चलते हुए आकाश गामिनी विद्या के नष्ट होने पर गगन-चारियों की जैसी मनःस्थिति होती है वैसे ही वे सब शून्य, म्लानमुख, उदास और क्रोधित हो गये । कनकोदर राजा से एक शब्द भी कहे बिना वे सब स्वयंवर मण्डप से निकल कर एक दिशा में चले गये। स्वप्न-दर्शन : फल इस घटना से कनकोदर राजा अत्यधिक शोक-सन्तप्त हुए। वह एक दिन उन्हें एक वर्ष जैसा लगा । जैसे-तैसे रात हुई । नियमानुसार प्रतिदिन संध्या समय राज्य सभा जुड़ती थी, उसमें भी वे उपस्थित नहीं हुए। उल्टा मुह कर पलंग पर पड़ गये । पलंग पर इधर से उधर करवट बदलते हुए बिना नींद के ही सारी रात व्यतीत हो गई। अन्त में मन अधिक भारी होने पर ऊषाकाल में थोड़ी आँख लगी। आँख लगते ही राजा को स्वप्न आया। स्वप्न में राजा ने दो पुरुष और दो स्त्रियों को देखा। उन्होंने महाराज से पूछा-महाराज कनकोदर ! जाग रहे हैं या सो गये? उत्तर में मानों महाराज ने कहा-वह जग रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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