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१. गुराधाररा और कुलन्धर
गुरगधारण कुमार *
मानवावास में एक सप्रमोद नगर था। यह नगर अनेक अकल्पनीय उत्तम गुणों से विभूषित था और इसमें निरन्तर उत्सव होते रहते थे। जैसे मेघ पृथ्वी को जल का दान देकर उपजाऊ बनाते हैं वैसे ही यहाँ के नागरिक प्रार्थियों को दान रूपी जल से सिंचित कर हर्षित करते थे। हृष्ट-पुष्ट नागरिक अपनी मन्द गति से झूमकर चलते हुए मानो इन्द्र के ऐरावत हाथी का भ्रम उत्पन्न करते थे। यहाँ की ललनायें रूप-लावण्य और वस्त्राभूषणों से देवांगनारों जैसी लग रही थीं। उनके पलक झपकने मात्र से वे देवियों से भिन्न दिखाई देती थीं। इस नगर में मधुवारण नामक राजा राज्य करता था जो शत्रु रूपी हाथियों के गण्डस्थल को छिन्न-भिन्न करने वाला, अत्यन्त पुरुषार्थी और विख्यात कीत्ति वाला था। यह राजा राज्यधन को प्रजा का धन मानकर उसे इस प्रकार व्यय करता था कि जिससे अधिकाधिक लोकोपयोगी कार्य हो सके। यह इतना आत्मविश्वासी था कि उसकी स्त्री अत्यन्त रूपवती होने पर भी उसने रणवास में कोई पहरेदार नहीं रखा था। उसकी रूप-लावण्य से परिपूर्ण, कमल जैसी आँखों वाली, उत्तम कुलोत्पन्न, अनेक गुण विभूषित सुमालिनी नामक महारानी थी। इसने राजा को अपने हृदय में बसा लिया था, फिर भी वह स्वयं राजा के चित्त में बसी हुई थी अर्थात् इनमें दो शरीर एक मन जैसा अटूट प्रेम था। [१-७]
हे भद्रे अगृहीतसंकेता ! मेरी स्त्री भवितव्यता की प्रेरणा से मैंने पुण्योदय के साथ इस निपुण धर्माचारिणी महादेवी सुमालिनी की कुक्षि में पुत्र रूप से प्रवेश किया । हे अनधे ! योग्य समय पूर्ण होने पर मैं कूख से बाहर आया। मेरे शरीर के सब अवयव सुन्दर थे। मेरा मित्र पुण्योदय भी मेरे साथ ही बाहर आया। मेरा जन्म होते ही चारों तरफ आनन्द फैल गया, बाजे बजने लगे, संगीत होने लगा
और पूरा राजभवन हर्ष में डब गया। उस समय जो बधाइयां दी गईं, उनका वर्णन अशक्य है। मेरे पिताजी को भी अत्यन्त आनन्द हुआ । मनमोहक रास, नृत्य और विलास होने लगे, बाजे बजने लगे, लोगों को पुरस्कार वितरित किये गये, भोजन प्रचुर मात्रा में वितरित किया गया, गायन की महफिलें जमने लगी, मद्य की मस्ती में मस्त लहरी लोग इधर-उधर घूमने लगे, सुन्दर स्त्रियों के साथ वामन नृत्य करने लगे, कुबड़े और कंचुकी हास्य-विनोद करने लगे और याचकों के मनोरथ पूर्ण किये गये । इस प्रकार जनमानस को आश्चर्यचकित करने वाला चमत्कारिक रूप से मेरा
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