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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
इसकी पत्नी कुदृष्टि ने मुझ से धर्म-बुद्धि से अनेक दारुण पाप करवाये और मुझे अधोगति में धकेला ।
रागकेसरी ने निःसार और साधुजनों द्वारा निन्दित शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि विषयों के प्रति मेरे मन में प्रीति उत्पन्न की और मेरे मन को दुर्बल बनाया।
इसकी जगप्रसिद्ध पत्नी मूढता * के वश होकर मैं संसार की अनिष्टता को कभी न समझ पाया। [७६२-७६६]
महामोह के पुत्र द्वेषगजेन्द्र ने कारण, बिना कारण जहाँ-तहाँ मुझमें अप्रीति उत्पन्न की और मुझे सन्तप्त किया।
इसकी पत्नी अविवेकिता ने तो मुझे वशवर्ती बनाकर कार्य-अकार्य का विचार करने से ही रोक दिया ।
रागकेसरी के मंत्री विषयाभिलाष ने मुझे शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में अत्यन्त लोलुप बनाकर अपने वश में कर लिया।
इसकी पत्नी भोगतृष्णा ने मुझे प्राप्त विषयों में गाढ मून्धि बनाया और अप्राप्त भोगों के प्रति मेरे मन में आकांक्षा उत्पन्न कर विडम्बित किया।
[७६७-८००] हे भद्र ! गाम्भीर्यता के प्रबल विरोधी हास्य ने मुझे बिना कारण ही बहुत बार हा-हा करके मुह फाड़-फाड़ कर हंसाया और मेरे मुख की गम्भीरता को नष्ट किया।
हे भद्र ! रति के वश विवश होकर मैंने मल, मूत्र, मांस, चर्बी आदि दुर्गन्धित पदार्थों से भरी हुई स्त्रियों के साथ रमण किया ।
हे भद्रे ! भिन्न-भिन्न प्रसंगों को लेकर परति ने मेरे मन को अनेक प्रकार से उद्वेलित और सन्तप्त किया।
भय ने मेरे मन में आतंक पैदा किया कि मैं मर जाऊंगा या कोई मुझे मार देगा या मेरा राज्य छीन लेगा।
प्रिय बन्धु की मृत्यु या धन के नष्ट होने आदि कारणों से शोक ने मुझे बार-बार विडम्बित किया।
___ जुगुप्सा ने मुझे तत्त्वमार्ग से हटाकर मिथ्याबुद्धि में लगाया और मुझे विवेकी-जनों के मध्य हास्य का पात्र बनाया।
पूर्ववणित पितामह महामोहराज की गोद में तूफान मचाने वाले रागकेसरी के आठ पुत्र और द्वेषगजेन्द्र के आठ पुत्र, इन सोलह कषाय बच्चों ने तो मुझे इतना उद्विग्न किया कि उसका वर्णन करना भी कठिन है। [८०१-८०८]
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