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प्रस्ताव ७ : श्रुति कोविद और बालिश
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इसका विश्वास करके कभी इसके कपट जाल में मत फंसना । यदि यह पापी संग तेरे पास नहीं आये तो श्र ुति तेरे पास रहकर भी तेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकती, तेरे लिये दोषकारिणी नहीं बन सकती । जब श्रुति अपने सेवक संग के साथ होती है तब वह अरुचिकर शब्दों से द्वेष और मधुर ध्वनि की लोलुप बनती है, पर स्वयं यह ऐसी नहीं है । यह संग के साथ से ही विकृत होती । जब यह संग के सहवास से राग-द्व ेष के वश होकर तुझे प्रेरित करे तब यह अनेक दुखों की परम्परा का कारण बनती है । किन्तु, संग से दूर रहकर कैसी भी वारणी सुनकर यह मध्यस्थ रहती है, राग-द्वेष रहित रहती है, इसीलिये पीड़ादायक नहीं होती । यह नीच संग अत्यन्त धम व्यक्ति है, दुष्टात्मा है, दासीपुत्र है और अनेक प्रकार के दुःख श्रौर त्रास का कारण है, अतः वह सर्वथा त्याग करने योग्य है । [ ६६५-६८०]
विनम्र कोविद ने सदागम की शिक्षा / परामर्श को शांति से सुना, स्वीकार किया और श्रुति के दास संग का सर्वथा त्याग कर दिया । यद्यपि कोविद ने श्रुति का विवाह सम्बन्ध कायम रखा, तदपि अब उसमें शब्द सम्बन्धी आतुरता या उत्सुकता जागृत नहीं होती । उसे बुरे शब्दों से द्वेष और मधुर शब्दों पर राग नहीं होता । इससे लोगों में उसकी प्रशंसा होती और वह स्वयं सुखी हो गया । यों कोविद संग का त्याग कर पूर्ण सुख प्राप्त किया और बालिश ने संग को हृदय स्थित कर भरपूर दुःख प्राप्त किया । [ ६८१-६८३]
हे भूप ! बाह्य प्रदेश में एक तु गशिखर नामक बड़ा पर्वत है । एक दिन कोविद और बालिश उस पर्वत पर जाने लगे । इस अत्यन्त उच्च पर्वत पर देवतात्रों द्वारा निर्मित एक गुफा है जो बहुत विशाल है और इतनी लम्बी है कि मानव को उसका अन्त कहीं दिखाई नहीं देता । [६८४-६८५]
बालिश की मृत्यु
इधर एक किन्नर युगल और एक गन्धर्व युगल में एक दिन गायन कला की प्रतिस्पर्धा हुई । दोनों युगल अपनी-अपनी कला को श्रेष्ठतम बताने लगे । इस प्रतिस्पर्धा का निर्णय करने के लिये उन्होंने तु गशिखर की विशाल गुफा का स्थान चुना । परीक्षकों की उपस्थिति में परस्पर की प्रतिस्पर्धा से वे दोनों युगल अपनीअपनी गायन - कला का वहाँ एकान्त स्थान में प्रदर्शन करने लगे । * अत्यन्त कर्णप्रिय मधुर ध्वनि से राग आलाप लेने लगे । हे नृप ! उसी समय कोविद और बालिश भी शिखर पर पहुँच गये । गुफा के भीतर से आते युगलों के गायन के सुमधुर स्वर को सुनकर वे सावधान हो गये । [६८६-६८९ ]
इस समय दुरात्मा बालिश ने संग की प्रेरणा से श्र ुति को गुफा के द्वार के पास खड़ा कर दिया । हृदयस्थित संग की प्रेरणा से स्वयं भी गायन सुनने में तल्लीन हो गया । बालिश ने अपना सर्वस्व श्र ुति को अर्पण कर दिया था, अतः उस समय
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