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उपमिति भव-प्रपंच कथा
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का प्रारम्भ नहीं करता तथा उसके भवचक्र का चलना बन्द हो जाता है । [४९८-५०५ ] ऊपर दो प्रकार की बात कही गई है एक कर्मबन्ध और दूसरा उससे फैलता भवचक्र । जो इन दोनों की प्रवृत्ति और निर्वृत्ति की वास्तविकता को जानते हैं, वे क्या संसार को बढ़ाने वाले शरीर, धन, इन्द्रिय-भोग या अन्य किसी भी पदार्थ पर कदापि राग कर सकते हैं ? जिस प्रारणी का चित्त सांसारिक पदार्थों पर आसक्त होता है, जिसे उनमें प्रानन्द और सुख की प्रतीति होती है, समझना चाहिये कि अभी तक उसने संसार-चक्र और विपर्यासचक्र को वस्तुतः तत्त्व से नहीं पहचाना है । इसका कारण यह है कि ज्ञान और क्रिया के योग से ही फल की प्राप्ति होती है, समस्त कार्यों की सिद्धि होती है, अन्य किसी भी कारणों से कार्य - सिद्धि नहीं हो सकती । ज्ञान द्वारा साध्य को बराबर पहचान कर, फिर उस पर सम्यक् प्रकार से प्राचररण करने पर ही साध्य की प्राप्ति हो सकती है । महामति ( उमास्वाति ) ने वस्तुस्वरूप को इसी प्रकार बताया है - " ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः " " सम्यक् प्रवृत्तिः साध्यस्य प्राप्त्युपायोऽभिधीयते" । सम्यक् प्राचरण ही साध्य प्राप्ति का उपाय है । यदि उससे साध्य की प्राप्ति न हो तो वह उपाय उपाय ही नहीं कहा जा सकता । जहाँ असाध्य का प्रारम्भ है, वहाँ सम्यग् ज्ञान नहीं और जहाँ सम्यग् ज्ञान नहीं, वहाँ साध्य का प्रारम्भ नहीं । साध्य और सम्यग् ज्ञान का परस्पर अन्योन्याश्रय सम्बन्ध । इसीलिये श्रागम का जानकार जो भी क्रिया करता है उसे सच्ची क्रिया कहा जाता है और जो व्यक्ति योग्य क्रिया में यथाशक्ति प्रयत्न करता है उसे आागम का जानकार कहा जाता है । जो प्राणी चिन्तामणि रत्न के स्वरूप को जानता है, जो गरीबी से पीड़ित है और जो उसकी प्राप्ति के अनेक उपाय भी जानता है, वह उसे प्राप्त करने के प्रयत्न को छोड़कर अन्य कार्यों में कदापि प्रवृत्ति नहीं कर सकता । अतः जो साध्य से विपरीत प्रवृत्ति करता है वह साध्य के स्वरूप को भली प्रकार से जानता ही नहीं । जो भौंरा मालती पुष्प की सुगन्ध को जानता है वह घास या दूब पर बैठने की प्रवृत्ति नहीं करता । संसार का अभाव होने से सत्प्राणी मुक्ति को प्राप्त करता है। अधिक क्या कहूँ ? तात्पर्य
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यह कि तुमने जो दूसरे चक्र की बात कही, बातों के परिणाम स्वरूप ही मुझे बन्दर विशेष कर्त्तव्य बताया था। [ ५०६ - ५१७ ]
वह सत्य है बच्चे की
मेरे गुरुजी ने भी इन सब यत्नपूर्वक रक्षा करने का
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अकलंक -- महाराज ! इस बन्दर को शिवालय / मठ में कैसे ले जाया जाय ? गुरुजी ने इसके क्या-क्या उपाय बताये ? [ ५१८]
छठे मुनि-भद्र ! जैसा प्राचार्य भगवान् ने मुझे मार्ग बताया, वह सुनाता हूँ सुनो -- सौम्य ! पिछले प्रकरण में जिस क्षयोपशम नामक गर्भगृह का वर्णन आया उसमें छः परिचारिकायें रहती हैं । उनका सामान्य नाम लेश्या है और प्रत्येक * पृष्ठ ६५२
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