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________________ २६४ उपमिति-भव प्रपंच कथा तू बाह्य भ्रमण का त्याग कर और अपने वास्तविक स्वरूप में स्थिर होकर बैठ तथा निराबाध बन । [४७६-४८१] चित्त को इस प्रकार शिक्षा देकर, समझा कर मैं भलीभांति लक्ष्य पूर्वक इसकी रक्षा में तत्पर रहूँगा। यदि यह पापी चञ्चल चित्त इतना समझाने पर भी नहीं मानेगा तो मैं इसे बाह्य-भ्रमण से प्रयत्न पूर्वक बार-बार रोकूगा। फिर कषाय, नोकषाय आदि सभी उपद्रवियों का अप्रमाद रूपी शस्त्र से नाश कर दूंगा । रागादि उपद्रवियों को उनके प्रतिपक्षियों के सहयोग तथा ज्ञान के उपयोग से एवं शुभध्यान के सेवन से मैं शीघ्र नष्ट कर दूंगा । राग-द्वेष का नाश होने पर परिषह उपसर्ग आदि बाह्य उपद्रव मुझे पीड़ित नहीं कर सकेंगे। फिर मेरा चित्त आत्माराम बन जायेगा, रागादि उपद्रवों से मुक्त हो जायेगा, बाहर भटकता बन्द हो जायेगा और मोक्ष के योग्य बन जायेगा। हे अकलंक ! मन में ऐसा दृढ़ निश्चय कर, उसके अनुसार आचरण करने का निर्णय लेकर अभी मैं प्रमाद का त्याग कर, सावधान होकर यहाँ निवास कर रहा हूँ। ऐसा उन छठे मुनि महाराज ने अपने वैराग्य और दीक्षा का कारण बताते हुए कहा । [४८२-४८८] Pos ६. संसार-बाजार (द्वितीय चक्र) छठे मुनि के वैराग्य-हेतु की कथा सुनकर अकलंक ने कहा --- भगवन् ! आपने बहुत अच्छा किया । आपने सद्गुरु की वाणी के रहस्य को समझ कर, योग्य प्रकार से आचरण कर आप उसे अपने जीवन में उतार रहे हैं। आपने जिस चित्त के चक्र की बात कथा में कही, वैसा ही एक अन्य चक्र भी मेरे विचार से होना चाहिये। मेरा यह विचार ठीक है या नहीं ? आप सुनकर स्पष्टीकरण करें । मुनि ने कहा -- भद्र ! अपने विचार प्रकट करो। अकलंक ने कहा-चित्त/मन दो प्रकार का कहा गया है, द्रव्यचित्त और भावचित्त । मनपर्याप्ति वाली आत्मा द्वारा ग्रहण किये गये मनोवर्गणा के पुद्गलों से द्रव्यचित्त निर्मित होता है। (छः पर्याप्तियों में से छठी मनपर्याप्ति द्वारा जो मनोवर्गणा ग्रहण की जाती है उसी को द्रव्यमन कहा जाता है ।) यह द्रव्यमन जब जीवात्मा के साथ संयुक्त होता है तब उसे भावमन कहा जाता है । भावमन कार्मण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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