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प्रस्ताव ७ : चार व्यापारियों की कथा
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चाहता है, उसके क्या हाल हैं ? चारु की बात सुनकर हितज्ञ ने घबराते हुए आज तक जो कुछ एकत्रित किया था उसे चारु को बतलाया। चारु ने देखा कि हितज्ञ ने मात्र शंख, कांच के टुकड़े और कौड़िये इकट्ठी कर रखी हैं। जब चारु ने उससे पूछा कि इतने दिनों तक वह क्या कर रहा था ? तब हितज्ञ ने आज तक किस प्रकार वह घूमने-फिरने में अपना समय व्यतीत कर रहा था, वह सब कुछ बताया। सुनकर कृपालु चारु ने समझाया-मित्र हितज्ञ ! पापी धूतों ने तुझे ठग लिया है। तुझे रत्नों का परीक्षण ज्ञान न होने से, तुझे मूर्ख समझ कर उन पापियों ने उसका लाभ उठाया है । तू बहुत भोला है । तू यहाँ रत्नद्वीप में व्यापारी बनकर रत्नों का व्यापार करने आया है, मौज-शौक करने नहीं आया है। सच्चे व्यापारी को ऐसे खोटे शौक नहीं करने चाहिये। [३४५-३४६]
चारु के उपर्युक्त वचन सुनकर हितज्ञ ने विचार किया कि, अहो ! चारु की बात कितनी अच्छी है, इसका मेरे प्रति कितना स्नेह है। मेरा हित कहाँ है और अहित कहाँ है, वह सब कुछ भली प्रकार जानता है। अतः इसी से पूछ लूकि अब मुझे क्या करना चाहिये ? यह सोचकर उसने पूछा--मित्रवत्सल चारु ! अब मैं अपना समय बाग-बगीचे देखने, चित्र देखने और मौज-शौक में थोड़ा भी नहीं बिताऊंगा। अब मुझ पर कृपा कर रत्नों के गुण-दोष अच्छी तरह बतला दो ताकि मुझे भी रत्नपरीक्षा पा जाय । फिर मैं तुम्हारे निर्देशानुसार कांच, शंख आदि न खरीद कर सच्चे रत्न ही खरीदूंगा और अपने जहाज को रत्नों से भर कर तुम्हारे साथ ही देश चलूगा, अतः हे नरोत्तम ! थोड़े दिन आप और ठहर जावें। [३५०-३५४]
चारु ने* सोचा कि योग्य की भांति हितज्ञ भी सच्चे उपदेश से अपने नाम को सार्थक करेगा। यह सोचकर चारु ने हितज्ञ को रत्न-परीक्षा सिखाई और केवल सच्चे रत्न ही खरीदने के बारे में उसे प्रयत्नपूर्वक समझाया । चारु के उपदेश से उसने मौज-शौक में व्यर्थ समय गंवाना बन्द कर दिया। अपने पास के पहले इकट्ठे किये काँच, शंख आदि का त्याग किया और एकाग्रता से मात्र अमूल्य रत्न एकत्रित करने में लग गया। अब हितज्ञ व्यापार-कुशल बन गया था और स्वयं रत्नों की परीक्षा कर खरीदने लग गया था। [३५५-३५८]
इसके पश्चात् चारु अपने तीसरे मित्र मूढ के पास गया और आदरपूर्वक उसे अपने स्वदेश लौटने के विचारों से अवगत किया । मूढ बोला-भाई चारु ! तू अभी देश लौटकर क्या करेगा ? इस द्वीप की रमणीयता को क्या तुम नहीं देख रहे हो ! इसे चारों तरफ घूम-फिर कर अच्छी तरह देखो। इसका तट कितना रमणीय है। चारों तरफ कमल वन हैं, ऊंचे-ऊंचे मकान हैं, सुन्दर उद्यान हैं, बड़ेबड़े सरोवर हैं। ये सब इस द्वीप की शोभा को द्विगुणित करते हैं । यहाँ कितने आराम और क्रीडा के स्थल हैं जो पुष्पों से भरे हुए वनखण्डों से आवेष्टित हैं। यहाँ
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