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________________ ३५ ३) भास्करनन्दिने उन्हें अपने गुरुको मृत्युके बाद समाप्त किया, और विशेष विवरण मूलपाठोंके पूरा होनेके तुरन्त बाद या उसके काफी समय बाद किसी लिपिकार द्वारा अन्तर्वेशित किये गये। हमारा श्लोक ९९, वृत्तिकी प्रशस्तिसे जिसकी नकल की गयी, सर्वसाधुके जीवनका वर्णन करता है, जिनकी मृत्युको कुछ समय हो गया है । वे 'इति' ( इस प्रकार वणित ) शब्द द्वारा उद्धृत किये गये हैं, जिसका अर्थ है कि अन्तर्वेशित करनेवाला उन्हें प्रत्यक्ष रूपसे नहीं जानता था। वृत्तिके हर अध्यायके अन्तमें संलग्न प्रशस्ति मृत महात्मा जिनचन्द्रके स्तवनके लिए अर्पित की गयी है, जिनके जीवनको उनकी सद्यः स्मृतिके कोमल स्वरमें प्रशंसा और अत्यन्त समाराधनाके साथ बहुमान दिया गया है । यह कुछ ऐसा लगता है कि यह जिनचन्द्रकी मृत्युके बाद ज्यादा समय बीतनेपर नहीं लिखी गयी है। यह कुछ ऐसा प्रभाव ज्यादा छोड़ती है, मानो 'वृत्ति' के हर अध्यायके अन्तमें इसे दोहराया गया है। और यह सम्भव है कि भास्करनन्दिने स्वयं अपने गुरुकी स्मृति में विशेष विवरणोंको इस तरह क्रमबद्ध करना पसन्द किया हो। मुझे ऐसा लगता है कि उपरोक्त तीसरी स्थिति सबसे ज्यादा सम्भाव्य मालूम पड़ती है, जिसमें यह कहा गया है कि भास्करनन्दिने अपने ग्रन्थ जिनचन्द्र की मृत्युके तुरन्त बाद पूरे किये, और पुष्पिकाएँ उसी समय जोड़ दी गयों, जब वे उनके शिष्यों द्वारा लिख ली गयी थीं। फिर भी, क्योंकि इस अनुमानके पक्षमें परिचित प्राप्त सामग्रीसे कोई अन्तिम निष्कर्ष नहीं निकलता, इसलिए आगे इसके बारेमें सूक्ष्मतासे विचार करना असम्भव है। इसलिए, यदि 'ध्यानस्तव' की आनुमानिक तिथिको निचली सीमा १२वीं शताब्दीके आरम्भके बाद निश्चित नहीं की जा सकती, तो इस काल्पनिक अथवा आनुमानिक तिथिको हमें ज्योंका त्यों स्वीकार कर लेना होगा। किसी भी हालतमें, इस सब सूचनाके साथ यह अनुमान लगाना यथार्थ से बहुत दूरकी बात नहीं होनी चाहिए कि भास्करनन्दि १२वीं शताब्दीके आरम्भमें, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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