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________________ २३ इसलिए इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। हम 'ध्यानस्तव' का ध्यानके स्वरूपोंमें ध्यानके प्रकारों, ध्याता और फल में भी विश्लेषण कर सकते हैं। ध्यान श्लोक ६में परिभाषित किया गया है, ध्यानका विभाजन श्लोक ८-२३ ( आगमिक ) और २४-३६ ( अन-आगमिक ) में वर्णित है, ध्यानीकी वांछनीय प्रकृति, जो कि धर्म्य और शुक्लध्यानकी है, श्लोक ७, १३-१४, ३८-१२ में प्रतिपादित हुई है । श्लोक १३ और १४ विशेष रूपसे धर्म्य-ध्यानसे सम्बन्धित हैं, तो भी, जैसे कि शुक्लध्यानके बारे में कहा गया है 'धर्म्यमेवातिशुद्धं स्याच्छुक्लं', इसमें भी निश्चय ही ये गुण होने चाहिए। ध्यानका फल ऐसे वचनमें निहित है, उदाहरणार्थ, 'मुक्तिका कारण', श्लोक ८, ३६ और इसी तरह आगे भो । इस प्रकार, हेमचन्द्र से पहले, ध्यानके वर्गीकरणके दो प्रकार थे, पुरातन और नूतन, जिनका सह-अस्तित्व था। हेमचन्द्र आर्त और रौद्रध्यानको स्वीकार नहीं करते। वे ध्येयके अन्तर्गत धर्माच्यानके चार आगमिक उपविभागोंके साथ-साथ चार स्थोंको एकत्रित करते हैं । धर्म्यध्यानकी यहाँ विभाजन सम्बन्धी दो भिन्न श्रेणियाँ हैं, जो पारम्परिक दृष्टिकोणसे अब भी एक मार्गच्युत अभ्यास है । ये दो श्रेणियाँ कैसे भी एकमें संश्लिष्ट होनी चाहिए । शुभचन्द्र ध्यानके चारों ही आगमिक विभागोंको स्वीकार करते हैं, और चारों स्थोंको बड़ी सुन्दरतासे धर्म्य-ध्यानके अन्तिम उपविभाग, संस्थान-विचयके अधीन कर देते हैं, जिससे ये सबसे अधिक मेल खाते हैं। यहाँ व्युत्पादित श्रेणी अत्यन्त तर्कसंगत रूपसे पारस्परिक श्रेणी में मिल गयी है, जो संघटनकी दिशामें परिवर्तनशील प्रक्रियाका अन्त कर देती है। योगशास्त्रने 'ज्ञानार्णव'से भावोंको ग्रहण किया है, या ज्ञानार्णवने योगशास्त्रसे, यह एक विवादका विषय है, और मैं इसके निर्णयसे बहुत दूर हूँ। धारणाओंमें ये दोनों एक दूसरेके बहुत करीब हैं। फिर भी, ज्ञानार्णव अपेक्षाकृत ज्यादा संगठित रूपमें प्रस्तुत किया गया है, और योगशास्त्रको अपेक्षा जैन ध्यान के ग्रन्थको तरह पूर्ण विस्तृत और शास्त्रीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001724
Book TitleDhyanastav
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorSuzuko Ohira
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages140
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Religion
File Size6 MB
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