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[ कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे विवेकविलास, प्रश्नविद्या अने राजवल्लभ आदि ग्रन्थकारो वास्तुभूमिना ९ भागो पाडीने पूर्वादि मध्यान्त कोठाओमां अनुक्रमे ब. क. च. त. ए. ह. स. प. य. आ नव वर्णोनो न्यास बतावे छे. जो के एमनी वच्चे पण ट-त-अ-ए-च-च-इत्यादि साधारण मतभेदो तो छ ज, छतां आ बधा ग्रन्थकारोनी मान्यतानुं उद्गम स्थान एक छ, एमां शंका नथी. आ मान्यता घणा खरा उत्तर भारतना ग्रन्थोमा प्रतिपादित थयेली छे.
निर्वाणकलिका, विश्वकर्मप्रकाश, मुहूर्तमार्तण्डज्योतिर्निबन्धादि कतिपय ग्रन्थोना मते ९ कोष्टकोमा लखवाना वर्णो 'अ-क-च-टत-प-य-श-ह-पया.' आ क्रमथी जणावेल छे. आ मतमा पूर्वादि ८ कोष्टकोमा अनुक्रमे ८ वर्गाक्षरो अने मध्य कोष्टकमां 'ह-प-य' आ त्रण अक्षरो होय छे. आ बन्ने मान्यताने आधारे नीचे एक नकशो आपीये छीये. १ मान्यता विवेकविलास आदिनी अने २ मान्यता निर्वाणकलिका अने ज्योतिर्निबन्धादिनी छे. ऐशानी
पौर्वी
आग्नेयी
(१) प | (२) श
(१) बव (२) अ
(१) क (२) क
(१) व-च
उत्तरा
(१) य (२) हपय
(२) य
(१) ए-अ (२) त
| (१) त-ट
(२) ट
(२)
प
वायवी
पश्चिमा
नैऋति
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