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[ कल्याण-कलिका जलप्लवथी भूमिपरीक्षा
पूर्व, ईशान अने उत्तर दिशामां जे भूमिर्नु जल जतुं होय ते भूमि सर्वजातिने माटे सुखदायक होय छे अने वर्ण परत्वे उत्तर, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम--जलवाहिनी भूमि अनुक्रमे ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य अने शूद्रने माटे हितकारिणी होय छे. अग्निकोणप्लवाभूमिमा अग्निभय, दक्षिणप्लवामां वैश्य सिवायनानुं मरण, नैर्ऋत्यप्लवामां चोरभय, पश्चिमप्लवामां शूद्र सिवायनां वर्णोने शोक अने वायव्यप्लवामां धान्यनो नाश थाय छे. आ विषयमा आचार्यवराहमिहिरनी व्यवस्था
उदगादिप्लवमिष्टं, विप्रादीनां प्रदक्षिणेनैव । विप्रः सर्वत्र वसेद-नुवर्णमथेष्टमन्येषाम् ।।३।।
भाटी-ब्राह्मणादिवोंने माटे अनुक्रमे उत्तर, पूर्व, दक्षिणपश्चिमप्लवभूमि निवासने योग्य होय छे, छतां ब्राह्मण सर्व निवासयोग्य भूमिमां वास करी शके, क्षत्रिय क्षत्रियादि त्रिवर्णोचित भूमिमां, वैश्य वैश्यादि द्विवर्णोचितमां अने शूद्र केवल शूद्रोचित भूमिमांज रही शके. वर्णोचित भूमि ज तेमना देवालयोने पण उचित होय छे. आ विषयमा वराहमिहिरनुं मन्तव्य
भूमयो ब्राह्मणादीनां, याः प्रोक्ता वास्तुकर्मणि । ता एव तेषां शस्यन्ते, देवतायतनेष्वपि ॥४॥
भाल्टी-ब्राह्मणादिवर्णोना घरो माटे जे प्रकारनी भूमिओ योग्य कही छे, तेज भूमिओतेमना देवमन्दिरोने माटे पण प्रशस्त जाणवी. योग्य भूमि ज अभ्युदयजनक थाय छे
नगरनिवेश, गृहनिवेश के देवालयनिवेश करतां पहेलां तेना स्थान-भूमिनी परीक्षा अवश्य करवी जोइये.
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